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________________ -चारचक्षुरवधिकेवलदर्शनावरणानि साता- वेदनीयं चतुःसंज्वलनकषायाः हास्यं रति भयं जुगुप्सा पुंवेदः यशःकीर्ति उच्चैर्गोत्रं पंचांतरायश्चेति। ततः अनिवृत्तिगुणस्थानस्य प्रथमभागे एवं अपूर्वकरणप्रकृति हास्यरतिभयजुगुप्सारहिता द्वाविंशतिप्रमाः अनिवृत्तीकरणे बध्नाति। तत ऊर्द्ध पुंवेदरहिता एकविशतिप्रकृति अनिवृत्ति -द्वितीयमागे बध्नाति। ततः संज्वलनक्रोघरहितः विंशति प्रकृतिः तृतीयभागे बध्नाति। ततोमानरहिताः एकोनविंशति प्रकृतीः चतुर्थभागे बध्नाति। ततो मायारहिताः अष्टादशप्रकृतिः पंचमभागे बध्नाति। किं नामास्ताः पंचज्ञानावरणानि चक्षुरचक्षु -रवधिकेवलदर्शनावरणानि सातावेदनीयं लोभः' यशः कीर्ति उच्चैर्गोत्रं पंचांतरायाः। चक्षु-अचक्षु-अवधि केवलदर्शनावरण, सातावेदनीय, संज्वलनकषाय चतुष्क, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, पुंवेद, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और 5 अंतराय। - इसके बाद अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथम भाग में अपूर्वकरण गुणस्थान की 26 प्रकृतियों में से हास्य, रति, भय और जुगुप्सा से रहित शेष 22 प्रकृतियों का अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में बंध करता है। इसके ऊपर अनिवृत्तिकरण के दूसरे भाग में पुरुष वेद रहित शेष 21 प्रकृतियों का बंध करता है। तीसरे भाग में संज्वलन क्रोध रहित शेष 20 प्रकृतियों का बंध करता है। चतुर्थ भाग में संज्वलन मान रहित 19 प्रकृतियों का बंध करता है। पंचम भाग में संज्वलन माया रहित 18. प्रकृतियों का बंध करता है। इन 18 प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं- पांच ज्ञानावरण, चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवलदर्शनावरण, सातावेदनीय, संज्वलनलोभ, यशः कीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अंतराय। (52) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
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