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-प्रकृति अपूर्वकरणगुणस्थानस्य प्रथमभागे अष्टपंचाशत्प्रमा अपूर्वकरणो बध्नाति। ततस्ता एव निद्राप्रचलारहिताः षट्पंचाशत्प्रमाप्रकृतिः स एवापूर्वकरणसंख्यातभागेषु बंध्नाति तत ऊट व सख्येयभागे पंचेन्दियजातिः वैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणशरीराणि समचतुरय संस्थानं वैक्रियिकशरीरांगोपांगः आहारकशरीरांगोपांगः वर्णः गंधः रसः स्पर्शः देवगतिः देवगतिप्रायोग्यानुपूयं अगुरुलघुः उपघातः परघातः उच्छवासः प्रशस्तविहायोगतिः त्रसः वादरः पर्याप्तिः प्रत्येक -शरीरः स्थिरः शुभः सुभगः सुस्वरः आदेयः निर्माणतीर्थकरत्वं एतस्त्रिंशतप्रकृतिस्त्यक्त्वा शेषा षट्विंशति प्रकृतिः स एव अपूर्व -करणो बध्नाति। किं नामास्ताः प्रकृतयः पंचज्ञानावरणानि
छोड़कर शेष 58 प्रकृतियों का बंध अपूर्वकरण गुणस्थान के प्रथम भाग में अपूर्वकरण गुणस्थानवाला जीव करता है। इसके पश्चात् इन 58 प्रकृतियों में से निद्रा और प्रचला से रहित 56 प्रकृतियों का वही अपूर्वकरण गुणस्थान वाला संख्यातवें भाग में बंध करता है इसके संख्यातवें भाग ऊपर जाकर पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक-आहारकतैजस-कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वैक्रियिक शरीर आंगोपांग, आहारकशरीर आंगोपांग, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण
और तीर्थंकर इन तीस प्रकृतियों को छोड़कर शेष 26 प्रकृतियों का वह अपूर्वकरण गुणस्थानवाला बांधता है।
26 प्रकृतियों के नाम इस प्रकार से हैं- पांच ज्ञानावरण,
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