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प्रकृतिबंधः
अथ बंधकाबंधकप्रकृतीनां विवरणं करोमि । पंचज्ञानावरणानि नवदर्शनावरणानि द्विधावेदनीयं षोडशकषायाः नवनोकषायाः मिथ्यात्वं चतुरायूंषि चतुर्गतयः पंचजातयः पंचशरीराणि त्रीण्यं गोपांगानि निर्माणं षट्संस्थानानि षट्संहननानि स्पर्शः रसः गंधः वर्णः चतुरानुपूर्व्याणि अगुरुलघुः उपघातः परघातः आतपः उद्योतः उच्छवासः द्विधाविहायोगतिः प्रत्येकशरीरः साधारणशरीरः त्रसः स्थावरः सुभगः दुर्भगः सुस्वरः दुःस्वरः शुभः अशुभः सूक्ष्मः बादरः पर्याप्तिः अपर्याप्तिः स्थिरः अस्थिरः आदेयः अनादेयः यशः कीर्तिः अयशः कीर्तिः तीर्थकरत्वं द्विधा गोत्रं पंचांतरायाः एता विशत्यधिकशतप्रमाबंधप्रकृतयो मंतव्याः ।
अब बंध और अबंध योग्य प्रकृतियों का निरूपण करता हूँ ।
पांच ज्ञानावरण, नव दर्शनावरण, दो वेदनीय, सोलह कषाय, नव नोकषाय, मिथ्यात्व चार आयु, चार गतियां, पांच जातियां, पांच शरीर, तीन आंगोपांग, निर्माण, छह संस्थान, छह संहनन, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, चार आनुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, दो विहायोगति, प्रत्येक शरीर, साधारण शरीर, त्रस, स्थावर, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, शुभ, अशुभ, सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, आदेय, अनादेय, यशः कीर्ति, अयशः कीर्ति, तीर्थंकर, दो गोत्र एवं पांच अंतराय ये एक सौ बीस बंध योग्य प्रकृतियां हैं।
सम्यक्त्व प्रकृति, सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति, पांच शरीर बंधन, पांच शरीर संघात, सात स्पर्श, चार रस, एक गंध, चार वर्ण ये 28 अबंध प्रकृतियां हैं।
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