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सम्यक्त्वं सम्यग्मिथ्यात्वं पंचशरीरबंधनानि पंचशरीरसंघातानि सप्तस्पर्शाः चतुरसाः गंधः चतुर्वर्णाः इमा अष्टाविशंत्यबंधप्रकृतयो भवति।
मिथ्यात्वगुणस्थाने आहारकशरीरं आहारकांगोपांगं तीर्थकरत्वमिति प्रकृतित्रयं मुक्त्वा शेषाः सप्तदशाधिकशतसंख्याः प्रकृति मिथ्यादृष्टिर्बध्नाति।
पंचज्ञानावरणानि नवदर्शनावरणानि द्विधावेदनीयं षोडशकषाया : हास्यादिषट्कं स्त्रीवेदः पुंवेदः नपुंसकवेदः तिर्यग्गायुः मनुष्यायुः देवायुः मनुष्यगतिः देवगतिः पंचेन्दियजातिः औदारिकशरीरः वैक्रियिकशरीरः तैजसः
विशेषार्थ- पाँच ज्ञानावरण, नव दर्शनावरण, दो वेदनीय, 26 मोहनीय क्योंकि सम्यक्त्व और मिश्र प्रकृति का बंध नहीं होता उदय व सत्त्व ही होता है। 4 आयु, 67 नामकर्म की, क्योंकि 5 बंधन और 5 संघात का 5 शरीरों में अंतर्भाव होता है तथा वर्णादि की 16 प्रकृतियों का वर्ण चतुष्क में अंतर्भाव होने से इन 26 प्रकृतियों को बन्ध में पृथक नहीं गिना है। गोत्र की 2 और अंतराय की 5 इस प्रकार 120 प्रकृतियाँ बन्ध योग्य कही गई हैं शेष 28 अबंधयोग्य कही गई हैं।
मिथ्यात्व गुणस्थान में आहारक शरीर, आहारक शरीर आंगोपांग, और तीर्थंकर इन तीन प्रकृतियों को छोड़ कर शेष 117 प्रकृतियों का मिथ्यादृष्टि बंध करता है।
पांच ज्ञानावरण, नव दर्शनावरण,. दो वेदनीय, सोलह कषाय, हास्यादि छह नो कषाय, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसक वेद, तिर्यंचायु, मनुष्यायु, देवायु , मनुष्यगति, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, वैक्रियक
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