SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचज्ञानावरणानि नवदर्शनावरणानि षोडशकषायाः नव- नोकषायाः मिथ्यात्वं पंचांतरायाः नरकगतिः तिर्यग्गतिः चतसोजातयः पंचसंस्थानानि पंचसंहननानि अप्रशस्तस्पर्शः अपशस्तरसः अप्रशस्तगंधः अपशस्तवर्णः नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्व्य उपघातः अप्रशस्त -विहायोगतिः साधारणशरीरः स्थावरः दुर्भगः दुस्वरः अशुभः सूक्ष्मः अपर्याप्तिः अस्थिरः अनादेयः अयशःकीर्ति असाता -वेदनीयं नीचैर्गोत्रं नारकायुः एता द्वयशीति पापप्रकृतयः प्राणिनां दुःखमातरो ज्ञातव्याः। पांच ज्ञानावरण, नवदर्शनावरण, सोलह कषाय, नव नोकषाय, मिथ्यात्व, पांच अंतराय, नरकगति, तिर्यंचगति, एकेन्द्रिय आदि चार जातियाँ, न्यग्रोधपरिमण्डलादि पांच संस्थान, वज्रनाराचादि पांच संहनन, अप्रशस्त स्पर्श, अप्रशस्त रस, अप्रशस्त गंध, अप्रशस्तवर्ण, नरकगति -प्रायोग्यानुपूर्वी, तिर्यचगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उपघात, अप्रशस्तविहायोगति, साधारणशरीर, स्थावर, दुर्भग, दुस्वर, अशुभ, सूक्ष्म, अपर्याप्त, अस्थिर, अनादेय, अयशः कीर्ति, असातावेदनीय, नीचगोत्र एवं नरकायु ये जीवों को दुख उत्पन्न करने वाली 82 पाप प्रकृतियां जानना चाहिए। विशेषार्थ- यहाँ अप्रशस्त प्रकृतियों में घातिया कर्मों की प्रकृतियां कही गई हैं सो घातिया कर्म तो अप्रशस्त रूप ही हैं। उनकी 47 प्रकृतियां- ज्ञानावरण 5, दर्शनावरण 9, मोहनीय 28 और अंतराय की 5 हैं तथा नीचगोत्र, असाता वेदनीय, नरकायु, नरकगति, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, तिर्यंचगति, तिर्यंचगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, एकेन्द्रियादि चार जाति, समचतुरस्र संस्थान बिना न्यग्रोधपरिमण्डलादि पाँच संस्थान, वजर्षभनाराच बिना वजनाराचादि पाँच संहनन, अशुभवर्ण (41) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002694
Book TitleKarma Vipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherNirgrantha Granthamala
Publication Year2004
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy