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यदुदयात् भूतानामभूतानां च दोषाणां ख्यापनं लोके भवति तद- यशःकीर्तिनाम। येनात्यंतशुभोदयेन लोकत्रयचमत्कारक्षोभकारकं पंचकल्याणपूजायोग्यमार्हत्वं सदृष्टे भवति तत् सर्वोत्कृष्ट तीर्थकरत्वनाम। यथा चित्रकारी हस्त्यश्वदेवनारकचित्राणि नानारूपाणि करोति तथा नामकर्म देवमनुष्यनारककीटतरुवृश्चिकादि नानारूपान्विधत्ते।
यत् शुभकर्मोदयात् लोकपूजितेषत्तमकुलेषु जन्म प्राप्यते तद् उच्चैर्गात्रं। यत् वशात् लोकगहितेषु कुलेषु जन्म स्यात् तत् नीचैर्गोत्रं। यथा कुंभकारो लघुवृहद्भाजनानि कुरुते तथा गोत्रकर्म उत्तमनिंद्यकुलानि जनयति।
जिस कर्म के उदय से विद्यमान या अविद्यमान अवगुणों का उद्भावन लोक द्वारा किया जाता है, वह अयशः कीर्ति नामकर्म है।
___ जिस शुभ नामकर्म के उदय से तीन लोक में चमत्कार, क्षोभ उत्पन्न करने वाली, पंचकल्याणक पूजा योग्य आर्हन्त्य पद की प्राप्ति होती है, वह सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकर नामकर्म है।
जैसे चित्रकार हाथी, घोड़ा, देव और नारकी के नाना रूप वाले चित्रों को बनाता है उसी प्रकार नामकर्म देव, मनुष्य, नारकी, कीट, वृक्ष, बिच्छू आदि नाना रूपों की रचना करता है।
जिसके उदय से लोकपूजित उत्तम कुलों में जन्म होता है, वह उच्चगोत्र है।
जिसके उदय से लोकगर्हित (निंद्य) कुलों में जन्म होता है, वह नीचगोत्र है।
जैसे कुंभकार छोटे बड़े बर्तन बनाता है, उसी प्रकार गोत्रकर्म उत्तम, निंद्य कुलों में उत्पन्न कराता है।
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