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________________ इति श्री पंचाध्यायी भाषा श्री नंददास विरंचितायां संपूर्णोयं ग्रंथ सुभमस्तु कल्याणमस्तु ॥ सवत् 1758 के असुनि मासे कृष्णपक्षे तिथि 12 वार गुरु संपूरण लिपि पूरन भयो परम गोप्य ग्रंथ अनंत वक्तव्य नांही परम हरिभक्त श्री भागवत मत परायण होय। तिनसौ प्रफूलित होइ कहै तौ अत्यन्त सुष होय। दोहा - संत सजाती रसिक जन मिलैं उपासिक आइ। तव इह रतन मंजूसिका षोलिर तू दिखराय ॥१॥ श्री॥ प्राप्ति-स्थान : श्रीराम भवन, पुस्तकालय, कोटपूतली (जयपुर)। इन पाँच प्रकार की पद्धतियों के अध्ययन से अनुसंधानकर्ता अपना रास्ता आसानी से तय कर सकेगा, ऐसी हमारी मान्यता है। 6. पाण्डुलिपि-विवरण में अन्य अपेक्षित बातें ये निम्नलिखित हैं - ग्रंथ का 'अतिरिक्त पक्ष' है - (1) पाण्डुलिपि का रख-रखाव : क्षेत्रीय अनुसंधानकर्ता के हाथ में पाण्डुलिपि आने के बाद उसके रख-रखाव (सुरक्षा) पर दृष्टि जाती है। सुरक्षा की दृष्टि से यह देखना होता है कि वह पाण्डुलिपि किस प्रकार के 'वेस्टन' में सुरक्षित है? वह वेस्टन कागज का है, कपड़े का है, चमड़े का है या किसी अन्य वस्तु का? कभी-कभी पाण्डुलिपि'वेस्टन' की बनिस्बत 'पिटक' (पेटी) में रखी मिलती है। वह पिटक धातु का है या काष्ठ का? ग्रंथ की 'जिल्द' कैसी है? जिल्दी कागज, कपड़ा या चमड़े की है, यह भी देखना चाहिए। प्राचीन ताड़पत्रीय ग्रंथ प्रायः काष्ठपट्ट' या 'पुट्ठों' में, ऊपर-नीचे लगाकर बाँधकर रखी जाती है। जैनधर्म की शब्दावली में इसे 'कंठिका या कांबी' कहा जाता है। यह कांबी या पट्टिकाएँ डोरी से बाँध कर गाँठ लगाई जाती हैं। देखना यह भी होता है कि डोरी में गाँठ लगाने की ग्रंथियाँ हैं या नहीं। ये ग्रंथियाँ किस वस्तु की और कैसी हैं? यह भी देख लें कि पट्टिकाओं पर चित्रांकन या अलंकरण हो तो उसका भी उल्लेख होना चाहिए। (2) ग्रंथ का स्वरूप : पाण्डुलिपि का 'स्वपक्ष' है उसका स्वरूप। इसमें प्रथम तो यह देखना होता है कि हस्तलिखित ग्रंथ की हालत कैसी है? हालत बताते समय उसके बाह्य रूप-रंग का परिचय देना होता है। जैसे - ग्रंथ का पाण्डुलिपि-प्राप्ति के प्रयत्न और क्षेत्रीय अनुसंधान 81 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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