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भाषा' एवं पत्र सं. 86 से 91 तक 'पंचाध्यायी', नन्ददास कृत लिपिबद्ध हैं। देशी कागज की इस पोथी के प्रत्येक पत्र में 18 पंक्तियाँ एवं प्रत्येक पंक्ति में 20 से 24 तक अक्षर हैं। लिपि सुपाठ्य है। लाल एवं काली स्याही का प्रयोग किया गया है। दोनों रचनाओं के नमूने -
क. श्री दसम स्कंध भाषा : नन्ददास, लिपिकाल 1701 ई. आदि - श्री राधावल्लभो जयते॥
श्री गुरुभ्यो नमः॥ अथ श्री दसम (स्कंध) नन्ददास कृत लीषते। दोहा - नव लक्षण करि लक्ष जो दसये आसिरै रूप।
नन्द वन्दि लै प्रथम तिहि श्री कृष्णाक्षि अनूप॥१॥ चौपाई - परम विचित्र मित्र इक रहै । कृश्न चरित्र सुन्यों सो चहै।
तिन्ह कही दसमसकंध जु आहि। भाषा करि कछु बरननु ताहि ॥
अन्त - दोहा - अष्टविंसति अध्याइ इह लीला सव सुष कंद।
मुक्तिन मांनि मनि जहाँ फिरि व्रज आए नन्द॥ इति श्री दसम सकंधे भाषा नन्ददासेन कृते अष्टविंसे अध्याई ।। 28 ।।
पुष्पिका - इति श्री दसम सकंध नन्ददास जी कृत सम्पूर्ण सुभं भवत संवत 1758 के भाद्रपद मांसे सुक्ल पक्षे तिथि एकादशी वार चंद्रवार शुभ पोथी स्वामी जी श्री रामदास जी पठनार्थ लिखतं महाजन डालू चतरा का वेटा सर्व संतनि को सेवग वाचै जिनको जै श्रीकृष्ण बंच्यज्यो पोथी गांव नाथूसर मैं लिखि पूर्ण करी॥
जादृसं पुस्तकं दृष्टवा तादृसं लिखिते मया।
सुधम असुधं वा मम दोषो न दीयते॥ (ख) श्री पंचाध्यायी : नन्ददास कृत, लिपिकाल सन् 1701 ई. आदि - हरिलीला रस मत्त मुदित निति विचरत जग में।
अद्भुत गति कहुं नहि न अटक है निकसै मग में ॥ १॥ अंत - अधहरनी मनहरनी सुन्दर प्रेम वितरनी।
श्री नंददास के कंठ बसौ नित मंगल करनी ॥ २०१॥
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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