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इसकी प्रति मेवाड़ के प्रसिद्ध कवि राव बख्तावर जी के पौत्र श्री मोहनसिंह जी राव के पास है।
(4) डॉ. हीरालाल माहेश्वरी की पद्धति : डॉ. माहेश्वरी ने अपने शोधप्रबन्ध 'जाम्मोजी, विष्णोई सम्प्रदाय और साहित्य' में हस्तलिखित ग्रंथों का विवरण प्रस्तुत किया। इसके पृ.सं. 41-42 से निम्न उदाहरण प्रस्तुत है - ___81 पोथी, जिल्दबंधी (ब, प्रति)। यत्रतत्र खण्डित। एकाधपत्र-अप्राप्त । अपेक्षाकृत मोटा देशी कागज। पत्र सं. 152 । आकार 10x7 इंच। हाशिया - दाएँ-बाएँ : पौन इंच। तीन लिपिकारों द्वारा सं. 1832 से 1839 तक लिपिबद्ध। लिपि सामान्यतः पाठ्य । पंक्ति प्रति पृष्ठ।
(क) हरजी लिखित रचनाओं में 23-29 तक पंक्तियाँ हैं। (ख) तुलछीदास लिखित सबद वाणी में 31 पंक्तियाँ हैं, तथा
(ग) ध्यानदास लिखित रचनाओं में 24-25 पंक्तियाँ हैं । अक्षर प्रति पंक्ति क्रमशः (क) में 18 से 20 तक, (ख) में 24 से 25 तक तथा (ग) में 23 से 25 तक।
गाँव 'मुकाम' के श्री बदरीराम थापन की प्रति होने से इसका नाम ब. प्रति रखा गया है । इसमें ये (14) रचनाएँ हैं - (रचनानाम, रचनाकार एवं छंद संख्या
सहित) .....
समत् 1832 मिती जेठ वद 13 लिषते वणिबाल हरजी लिषावतं अतित, रासाजी लालाजी का चेला पोथी गांव जाषांणीया मझे लिषी छै सुभमसतु कल्याणं॥
कथा चतुरदस मे लिखी अरज करूं कर धारि।
घट्य बधि अक्षर जो हुवै । सन्तो ल्यौह सुधारि ॥१॥ (5) हमारी पद्धति' : (3) पोथी - 91 पन्नों की इस पोथी का आकार 937x631 इंच है । इस पोथी के लिपिकर्ता महाजन डालू हैं तथा लिपिकाल वि.सं. 1758 तदनुसार सन् 1701 ई. है। पोथी के पत्र सं. 1 से 85 तक 'दशम स्कन्ध 1. शोध-पत्रिका, वर्ष 32/अंक 2, अप्रेल-जून 1981, पृ. 68-72, ब्रजभाषा के हस्तलिखित
ग्रंथों की खोज; डॉ. एम.पी. शर्मा ।
पाण्डुलिपि-प्राप्ति के प्रयत्न और क्षेत्रीय अनुसंधान
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