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(ङ) (1) पर अन्त के इन 25 पन्नों में कौन-कौन से प्रस्ताव लिखे हुए थे, इनमें कितने पन्ने खाली थे; इस प्रति को लिखवाने का काम कब पूरा हुआ था और (2) यह किसके लिए लिखी गई थी? इत्यादि बातों को जानने का इन पन्नों के गायब हो जाने से अब कोई साधन नहीं है। लेकिन प्रति एक-दो वर्ष के अल्पकाल में लिखी गई हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता; क्योंकि (च) इसमें नौ-दस तरह की लिखावट है और (छ) प्रस्तावों का भी कोई निश्चित क्रम नहीं है। ज्ञात होता है रासौ के भिन्न-भिन्न प्रस्ताव जिस क्रम से और जब-जब भी हस्तगत हुए वे उसी क्रम से इसमें लिख लिये गये हैं।
(ज) 'ससिव्रता सम्यौ', 'सलष युद्ध सम्य' और 'अनंगपाल सम्यौ' के नीचे उनका लेखन-काल भी दिया हुआ है। ये प्रस्ताव क्रमशः सं. 1770, सं. 1772
और सं. 1773 के लिखे हुए हैं, लेकिन 'चित्ररेखा', 'दुर्गाकेशर' आदि दो-एक प्रस्ताव इसमें ऐसे भी हैं जो कागज आदि को देखते हुए इनसे 25-30 वर्ष पहले के लिखे हुए दिखाई पड़ते हैं।
विभिन्न हाथों की लिखावट के कारण प्रति के सभी पृष्ठों पर पंक्तियों और अक्षरों का परिमाण एकसा नहीं है। किसी पृष्ठ पर 13, किसी पर 15, किसी पर 25 तथा किसी-किसी पर 27 पंक्तियाँ हैं । लिखावट सभी लिपिकारों की सुपाठ्य हैं । पाठ भी अधिकतर शुद्ध ही है। दो-एक लिपिकारों ने संयुक्ताक्षरों के लेखन में असावधानी की है और ख्ख, ग, त्त आदि के स्थान पर ख, ग, त आदि लिख दिया है। इससे कहीं-कहीं छन्दोभंग दिखाई देता है। इस प्रति में 67 प्रस्ताव हैं । उपर्युक्त प्रति संख्या 2 के मुकाबले में इसमें तीन प्रस्ताव (विवाह सम्यौ, पद्मावती सम्यौ और रेणसी सम्यौ) कम और एक (समरसी दिल्ली सहाय सम्यौ) अधिक है।
उदाहरण - सं. 1770 की प्रति के 'ससिव्रता सम्यौ' से। दूहा - आदि कथा शशिवृत की कहत अब समूल ।
दिल्ली वै पतिसाह गृहि कहि लहि उनमूल ॥ १ ॥ अरिल्ल - ग्रीषम ऋतु क्रीडंत सुराजन। षिति उकलत षेह नभ छाजन ॥
विषम बाय तप्पित तनु भाजन। लागी शीत सुमीर सुराजन ।।
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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