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________________ सं. 1696 जेठ सुद 13 शनिवार और लेखक का नाम रघुनाथ दिया गया है। लिपि मारवाड़ी है और ड तथा ङ में भेद नहीं किया गया है। ग्रंथ में निम्न कृतियाँ हैं - (क) परिहाँ दूहा वगैरे फुटकर वातां, पृ. 1 अ - 11 ब। (ख) नागौर रै मामलै री कविता, पृ. 12 अ - 21 अ (इसमें तीन प्रशस्ति कविताएँ हैं)। (ग) नागौर रे मामलै री बात, पृ. 27 अ - 45 ब। प्रारम्भ का अंश : बीकानेर महाराजा श्री करनीसिंह जी रै राज ने नागौर राउ अमरसिंह गजसिघौत रो राज सु नागौर बीकानेर रो कांकड़ गांव (०)। जाषपीयो सु गांव बीकानेर रो हुतो ने नागौर रा कहे नु गांव माहरो द्वीवहीज असरचो हुतो ..... आदि। अन्त का अंश : इसड़ो काम मुहते रामचन्द्र नु फबीयो बड़ो नांव हुयो पातसाही माहे बदीतो हुवो इसड़ो बीकानेर काही कामदार हुयो न को हुसी। इस विवरण में डॉ. टैसिटरी ने ग्रंथ के आकार को बताने के लिए ही इसे गुटका कहा है। इसके साथ ही वेस्टन का भी उल्लेख करते हैं - "394 पन्नों का चमड़े की जिल्द में बंधा वृहदाकार ग्रंथ। और फिर सभी विवरण डॉ. शास्त्री जैसा ही। हाँ, चित्रों के सम्बंध में अतिरिक्त जानकारी दी गई है। (3) डॉ. मोतीलाल मेनारिया की पद्धति : 'राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज' प्रथम भाग के पृ. 64-65 पर डॉ. मेनारिया 'पृथ्वीराज रासो' की एक प्रति का विवरण निम्न प्रकार प्रस्तुत करते हैं - (क) प्रति सं. 5, (ख) साइज 10x11 इंच, (ग) (1) पुस्तकाकार, (2) अपूर्ण, (3) बहुत बुरी दशा में। (घ) इसके आदि के 25 और अन्त के कई पन्ने गायब हैं जिससे आदि पर्व के प्रारंभ के 67 रूपक और अन्तिम प्रस्ताव (वाणवेध सम्यों) के 66वें रूपक के बाद का समस्त भाग जाता रहा है। इस समय इस प्रति के 786 (26-812) पन्ने मौजूद हैं । बीच में स्थान-स्थान पर पन्ने कोरे रखे गये हैं जिनकी संख्या कुल मिलाकर 25 होती है । प्रारंभ के 25 पन्नों के नष्ट हो जाने से इस बात का अनुमान तो लगाया जा सकता है कि अन्त में भी इतने ही पन्नो गायब हुए हैं। पाण्डुलिपि-प्राप्ति के प्रयत्न और क्षेत्रीय अनुसंधान 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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