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________________ विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकती है । इसके बाद ग्रंथ-भाषा; प्रयुक्त-छन्द, छन्दों की संख्या और ग्रंथ के विषय का विवरण एवं पुष्पिका में अंकित लिपिकाल, तिथि, वार आदि का विवरण भी लेना आवश्यक है। यदि अनुसंधानकर्ता प्रबुद्ध है तो उसे उस पाण्डुलिपि का काव्य-रूप-प्रबन्ध, मुक्तक आदि और शैली का ब्यौरा भी देना चाहिए। पाण्डुलिपि में यदि लिखावट का भेद देखने में आता है तो उसे भी अंकित करना अपेक्षित है। 5. पाण्डुलिपि-विवरण-प्रस्तुतीकरण-प्रारूप क्षेत्रीय अनुसंधानकर्ता जब क्षेत्र-विशेष में पाण्डुलिपियों तक पहुँच जाता है तब उसे प्राप्त पाण्डुलिपियों का व्यवस्थित विवरण तैयार करना चाहिए। हमारे देश में समय-समय पर पाण्डुलिपियों की जो खोज रिपोर्ट प्रस्तुत हुई हैं, उनमें अनुसंधानकर्ताओं ने जिस पद्धति या प्रारूप का अनुसरण किया है उनमें से कुछ के विवरण प्रस्तुत करने के स्वरूप की बानगी यहाँ प्रस्तुत करना चाहेंगे। रचना का नाम 'कुब्जिकामतम्'। (1) महामहोपाध्याय हर प्रसाद शास्त्री की पद्धति' : सन् 1898-99 में शास्त्री जी ने एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के लिए नेपाल के दरबार पुस्तकालय के हस्तलिखित ग्रंथों का विवरण प्रस्तुत करते हुए जिस पद्धति का अनुसरण किया उसका नमूना देखिए - (क) (29/कां) - ग्रंथ की पुस्तकालयगत संख्या (ख) कुब्धिकामतम् (कुलालिकाम्नायान्तर्गतम्) - पुस्तक का नाम उसकी उपव्याख्या सहित (ग) 10x17, inches - पुस्तक का आकार बताने के लिए पृष्ठ की लम्बाई 10" और चौड़ाई 17," है। (घ) Folio, 152 – पृष्ठ संख्या बताई गई है। (ङ) Lines 6 on a page - प्रत्येक पृष्ठ में पंक्ति संख्या कितनी है। (च) Extent 2,964 slokas - पाण्डुलिपि परिमाण कुल श्लोक संख्या। 1. Shastri, H. P. - A Catalogue of palm leaf and selected papers MSS belonging to the Darbar Library, Nepal - पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 72-73 से साभार । पाण्डुलिपि-प्राप्ति के प्रयत्न और क्षेत्रीय अनुसंधान 75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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