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की कुछ जानकारी ग्रंथ-खोजकर्ता को सहायक सिद्ध हुई है। इनके कारण लोग उसकी ओर सहज रूप से आकृष्ट हो सकते हैं । इसी प्रकार पशु-चिकित्सा का कुछ ज्ञान हो तो क्षेत्रीय कार्य में उपयोगी होगा तथा दैनिक जीवन में काम आने वाली ऐसी अन्य चीजों को यदि वह जानता है, जिनके न जानने से मनुष्य दुःखी रहते हैं तो वे उसकी सहायता करने के लिए सदा प्रस्तुत रहेंगे। व्युत्पन्नमति और तत्पर बुद्धि भी बड़ी सहायक सिद्ध हुई है।"
इनके अतिरिक्त प्रस्तुत पंक्तियों के लेखक का यह अनुभव रहा है कि ज्योतिष, हस्तरेखा और कुछ सामाजिक-नैतिक कहानी-किस्सों का ज्ञान भी पाण्डुलिपि अनुसंधानकर्ता को हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्त करने में बड़ा सहायक सिद्ध होता है । उसे एक चरित्रवान, आदर्श, धैर्यवान, विश्वसनीय एवं भले इन्सान के रूप में अपने-आपको प्रस्तुत करना चाहिए।
पाण्डुलिपियों के संग्रह करने के दो कारण स्पष्ट हैं - 1. सामान्य, 2. साभिप्राय । सामान्य कारण तो स्पष्ट है ही। साभिप्राय खोज में किसी विशेष पाण्डुलिपि की प्रतिलिपियों की खोज की जाती है। इसमें बड़े धैर्य की आवश्यकता है। एक कड़ी से दूसरी कड़ी मिलाते हुए ही खोजकर्ता अभिप्सित पाण्डुलिपि तक पहुँच पाता है। डॉ. सत्येन्द्र कहते हैं कि इस प्रकार की खोज में सूत्र से सूत्र मिलाने में भी कितने ही अनुमान और उनके आधार पर कितने ही प्रकार के प्रयत्नों की अपेक्षा रहती है। बड़े धैर्यपूर्वक एक के बाद दूसरे अनुमान करके उनसे सूत्र मिलाने के प्रयत्न किये जाते हैं। 3. क्षेत्रीय अनुसंधानकर्ता का करणीय
उपर्युक्त गुणों से युक्त अनुसंधानकर्ता को चाहिए कि वह एक अनुसंधान डायरी, पैन, फुटा, रबर आदि अपने पास रखे। इस डायरी में क्षेत्रीय कार्य का दैनिक विवरण लिखना चाहिए। उदाहरण के लिए - जिस गाँव या कस्बे में वह जाये उसका नाम, उस व्यक्ति का नाम जिसके पास पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हैं, उसकी जाति एवं सामान्य वंश-परिचय के साथ उस घर में ग्रंथ-विशेष की उपस्थिति का विवरण भी दें। इस यात्रा के दौरान कितने ग्रंथ देखे? कितने बँधे 1. पाण्डुलिपि विज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 68-69 2. वही, पृ. 70
पाण्डुलिपि-प्राप्ति के प्रयत्न और क्षेत्रीय अनुसंधान
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