SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जायसवाल, मुनि पुण्यविजयजी, मुनि जिनविजय जी, डॉ. राहुल सांकृत्यायन, डॉ. रघुवीर, डॉ. भण्डारकर, डॉ. व्हूलर, अगरचंद नाहटा, डॉ. भोगीलाल सांडेसरा, डॉ. पीताम्बर बड़थ्वाल, भाष्कर रामचन्द्र भालेराव आदि के नाम लिए जा सकते हैं। ये विद्वान पाण्डुलिपि के सम्बंध में स्वयं निर्णय लेते थे, क्योंकि ये अपने विषय के विद्वान होते थे। दूसरे प्रकार के अनुसधानकर्ता को खोजकर्ता या एजेण्ट कहा जा सकता है। ये किसी व्यक्ति या संस्था की ओर से पाण्डुलिपियों की विवरण सहित खोज रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। इन्हें उस क्षेत्र-विशेष की जानकारी भी देनी होती है, जहाँ से और जिससे पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुई हैं। तीसरे प्रकार के अनुसंधानकर्ता व्यावसायिक वृत्ति के होते हैं। वे प्रायः पाण्डुलिपियों के महत्व को स्वीकारते हुए इतस्त: क्षेत्र में जाकर पाण्डुलिपि संबंधी जानकारी एकत्र कर विशिष्ट विद्वानों से उनके महत्व की जानकारी प्राप्त कर कुछ लाभ प्राप्त करने के लिए उनका संग्रह करते हैं और फिर समय-समय पर उन्हें बेचते रहते हैं। कभी-कभी इस वृत्ति के अनुसंधानकर्ताओं के माध्यम से हमारे देश की विपुल-महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियाँ विदेशों में चली जाती हैं। 2. क्षेत्रीय अनुसंधानकर्ता के गुण एक कुशल अनुसंधानकर्ता में क्या-क्या गुण या खूबियाँ होनी चाहिए, इस संबंध में डॉ. सत्येन्द्र कहते हैं - "इसके लिए ग्रंथ-खोजकर्ता में साधारण तत्पर बुद्धि होनी चाहिए, उसमें समाजप्रिय या लोकप्रिय होने के गुण चाहिए। उसमें विविध व्यक्तियों के मनोभावों को ताड़ने या समझने की बुद्धि भी होनी चाहिए जो साधारण बुद्धि का ही एक पक्ष है। फिर, उसके पास कोई ऐसा गुण (हुनर) भी होना चाहिए जिससे वह दूसरों की कृतज्ञता पा सके। जहाँ ग्रंथों की टोह लगे वहाँ के लोगों का विश्वास पा सकने की क्षमता भी होना अपेक्षित है । विश्वासपात्रता प्राप्त करने के लिए उस क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले व्यक्तियों से परिचय-पत्र ले लेने चाहिए। ऐसे क्षेत्रों में मुखिया, पटवारी, जमींदार या पाठशाला के अध्यापक अपना-अपना प्रभाव रखते हैं । इन व्यक्तियों से मिलकर हम अच्छी तरह ग्रंथों का पता भी लगा सकते हैं तथा सामग्री भी जुटा सकते हैं । ज्योतिष या हस्तरेखा विज्ञान और वैद्यक 72 सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy