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अध्याय 2
पाण्डुलिपि-प्राप्ति के प्रयत्न
और क्षेत्रीय अनुसंधान
पाण्डुलिपिविज्ञान का प्रारंभ पाण्डुलिपि प्राप्ति के प्रयत्नों से प्रारम्भ होता है। पाण्डुलिपिविज्ञान में ये प्रयत्न ही क्षेत्रीय अनुसंधान' की आधारशिला होते हैं। क्षेत्रीय अनुसंधान सामान्यत: दो स्तरों पर किया जाता है - (अ) पुस्तकालय स्तर पर : पुस्तकालय स्तर पर क्षेत्रीय अनुसंधानकर्ता को तीन प्रकार के पुस्तकालयों से सम्पर्क करना पड़ता है - (क) धार्मिक : ये पुस्तकालय धार्मिक मंदिरों, मठों, विहारों में स्थित
होते हैं। (ख) शासकीय : ये पुस्तकालय राज्य-शासन द्वारा परिचालित होते हैं।
प्राचीन राजा-महाराजाओं के द्वारा संचालित पुस्तकालय इसी श्रेणी में आते हैं। आजकल के
प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान भी इसी श्रेणी में आते हैं। (ग) विद्यालीय : ये पुस्तकालय प्रायः सार्वजनिक विद्यालयों -
महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में होते हैं। (ब) निजी स्तर पर : पाण्डुलिपि प्राप्त करने का दूसरा क्षेत्र निजी होता है। हमारे देश में प्राचीनकाल से ही पाण्डुलिपियों-पोथियों के प्रति अपार श्रद्धा रही है। परिणामस्वरूप घर-घर में हस्तलिखित ग्रंथों का होना गौरव और प्रतिष्ठापूर्ण माना जाता रहा है। यहाँ तक कि पोथियों की पूजा की जाती है। अनेक ऐसे मत या सम्प्रदाय रहे हैं, जहाँ 'गुरुवाणी' की ही पूजा-अर्चना की जाती है। पाण्डुलिपियों की खोज या अनुसंधान की दृष्टि से बीसवीं शती अत्यधिक
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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