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देने के लिए विशेष प्रणाली अपनाई जाती थी - लकड़ी, हाथीदाँत या नारियल का टुकड़ा लेकर उसे गोल चपटी-चकरी बना लेते थे। फिर उसमें छेद कर डोरी पिरो कर बाँधी जाती थी। इससे यह चकरी ही ग्रंथि या गाँठ कहलाती थी।
(4) हड़ताल : अशुद्ध लेखन को मिटाने के लिए हड़ताल फिरा दिया जाता था। इससे पीली स्याही भी बनाई जाती थी।
(5) परकार : पाण्डुलिपि की समाप्ति पर स्याही से कमल आदि बनाने की परम्परा रही है। सूक्ष्म गोले की आकृति बनाने के लिए परकार की सहायता ली जाती है।
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पाण्डुलिपि-ग्रंथ : रचना-प्रक्रिया
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