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________________ विष्णुधर्मोत्तर पुराण एवं भोजकृत 'समराँगण-सूत्रधार' नामक रचनाओं में चित्रकर्म के आठ अंगों का वर्णन मिलता है। वे इस प्रकार हैं - (1) वर्तिका - बरता या पेंसिल। (2) भूमि बन्धन - लेख का आधार, जैसे - काष्ठ पट्टिका, ताड़पत्र, भोजपत्र, कपड़ा, कागज) (3) लेख्य या लेप्य कर्म - चित्र के लिए पृष्ठभूमि का लेपन या आलेखन। (4) रेखाकर्म - (खाका) कूँची से रेखांकन कर चित्र का प्रारूप तैयार करना। (5) वर्णकर्म - रंग भरना; लाल, पीला, हरा आदि रंग काम में लिए जाते थे। (6) वर्तनीकर्म - वर्तनी या कूँची से रंगों के हल्के या भारीपन को ठीक किया जाता है। (7) लेखकर्म – चित्र में किया जाने वाला अन्तिम रेखांकन। (8) द्विककर्म - कभी-कभी मूलरेखा को अधिक स्पष्ट करने के लिए रेखा को दोहरा बना दिया जाता था। 21. पाण्डुलिपि-रचना में प्रयुक्त अन्य उपकरण (1) रेखापाटी : इसे समासपाटी या कांबी भी कहा जाता है। समानान्तर रेखाएँ खींचने के लिए रेखापाटी का प्रयोग किया जाता है । यह एक लकड़ी की पट्टी होती है। डोरियाँ लपेट कर और स्थिर कर समानान्तर रेखाएँ बनाई जाती हैं, जिस पर लिप्यासन (कागज) रख कर दबाने से रेखाएँ उभर जाती हैं। (2) डोरा-डोरी : ताड़पत्र की पाण्डुलिपि के बीचों-बीच छेदकर एक डोरा पिरो दिया जाता था। इससे सभी पत्र व्यवस्थित रहते थे। बाद में कागज की पाण्डुलिपियों में यद्यपि डोरा नहीं डाला जाता था, परन्तु बीच में चौकोर जगह छोड़ने की परम्परा बन गई थी। (3) ग्रंथि : पाण्डुलिपि की सुरक्षार्थ, उसे डोरी या डोरे से सूत्रबद्ध करके, ग्रंथ के आकार की काष्टपट्टिकाओं में छेद कर, उनमें से पिरोया जाकर दोनों ओर गाँठ लगाई जाती थी। इन डोरों को काठपाटी से निकाल कर ग्रंथि या गाँठ 68 . सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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