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________________ उपयोग भी बढ़ गया । अशुद्धियों को मिटाने के लिए पीली हड़ताल का प्रयोग भी होता था । 1 (2) सोने-चाँदी की स्याही ( सुनहरी एवं रूपहरी ) : पाश्चात्य एवं भारतीय प्राचीन ग्रंथों में सुनहरी एवं रूपहरी स्याही का उपयोग देखने को मिलता है । ये स्याहियाँ सोने-चाँदी के वर्कों से बनती थीं । प्रायः इन स्याहियों का प्रयोग चित्र-सज्जा में अधिक होता था । 15वीं शती का ' यंत्रावचूरि' नामक ग्रंथ चाँदी की स्याही में ही लिखा गया था । 200-250 वर्ष प्राचीन रचनाएँ, जो अलंकरण एवं चित्रों से सुसज्जित थीं, हमें भी देखने को मिली थी । ( 3 ) अष्टगंध एवं यक्षकर्दम की स्याही : प्राचीनकाल से ही अनुष्ठानादि एवं तांत्रिक ताबीज आदि बनाने के लिये अष्टगन्ध एवं यक्षकर्दम का प्रयोग किया जाता था। मुनि पुण्यविजयजी ने 'अष्टगन्ध' की स्याही की दो विधियाँ बताई हैं (1) अगर, तगर, गोरोचन, कस्तूरी, रक्तचन्दन, चन्दन, सिंदूर और केसर को मिलाकर बनाई जाती है, जिसका भोजपत्र पर लिखने में उपयोग होता है । (2) कपूर, कस्तूरी, गोरोचन, सिदरफ, केसर, चन्दन, अगर एवं गेहूला को मिलाकर बनाते हैं । इनके अतिरिक्त ‘यक्षकर्दम' में 11 वस्तुएँ मिलाई जाती हैं - चन्दन, केसर, अगर, बराग, कस्तूरी, मरचकंकोल, गोरोचन, हिंगलो, रतंजणी, सोने के वर्क एवं अंवर को मिलाकर बनाई जाती हैं । 18. चित्र - रचना और रंग पाण्डुलिपियों में चित्र - रचना की परम्परा बहुत पुरानी है। सचित्र पाण्डुलिपि उस हस्तलिखित पुस्तक को कहते हैं, जिसके पाठ को विविध चित्राकृतियों से सजाया गया हो और सुन्दर बनाया गया हो ।' यह सज्जा सुनहरी या रूपहरी स्याही से की जाती थी । पश्चिम में 14वीं शती से ऐसी चित्र-सज्जा का उल्लेख मिलता है । हमारे देश में 11वीं से 16वीं शती तक बने अपभ्रंश शैली के चित्र पाण्डुलिपियों में मिलते हैं । मुख्यतः ये चित्र जैन-धर्म-संबंधी पोथियों में बीचबीच में छोड़े हुए चौकोर स्थानों में बने हुए मिलते हैं । इनमें पीले और लाल रंगों का अधिक प्रयोग हुआ है । Encyclopaedia Americana, Vol. 18, P. 242 1. 66 Jain Education International सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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