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________________ (1) मंगलाचरण या मंगल प्रतीक, (2) अलंकरण, (3) नमोकार, (4) स्वस्तिमुख, ( 5 ) आशीर्वचन, ( 6 ) प्रशस्ति, (7) पुष्पिका या उपसंहार, (8) वर्जना ( 9 ) लिपिकार प्रतिज्ञा, ( 10 ) लेखन समाप्ति शुभ । 1. मंगलाचरण या मंगल प्रतीक : भारत में मंगलाचरण या मंगल प्रतीक की परम्परा ई. सन् के प्रारंभ से प्राप्त होती है जिसमें पाण्डुलेख, शिलालेख आदि में लेखन प्रारम्भ करने से पूर्व मंगलचिह्न या प्रतीक, जैसे स्वस्तिक या शब्दबद्ध मंगल आदि लिखने की प्रथा थी। प्रारंभ में सर्वप्रथम 'सिद्धम्' शब्द लिखा जाता था। बाद में इस हेतु 15 चिह्न की कल्पना की गई। कभी-कभी इन दोनों का साथ-साथ और कभी-कभी अलग-अलग प्रयोग भी होता था । वास्तव में यह चिह्न D ' ओं' का स्थानापन्न था। कभी-कभी 'ओम्' के लिए '१' अंक का भी प्रयोग किया जाता था । पाँचवीं शताब्दी से 'स्वस्ति' शब्द का प्रयोग मंगल प्रतीक के रूप में प्रयुक्त होने लगा। धीरे-धीरे इस 'स्वस्ति' के साथ 'ओम' शब्द लगाकर 'ओम स्वस्ति' भी लिखा जाने लगा था । शिलालेखों से ऐसे अनेक मंगल-चिह्न प्राप्त हुए हैं, जैसे स्वस्ति जयत्याविष्कृतम्, ओम् स्वस्ति जयत्याविष्कृतम्, ओम नमः शिवाय, ओम् ओम् नमो विनाकाय, ओम् नमो वराहाय, ओम् नमः सर्वज्ञाय, आदि । साहित्यिक पाण्डुलिपियों में 'जिन' या संप्रदाय प्रवर्तक ओम् निम्बार्काय का स्मरण मिलता है। सामान्यतः 'श्री गणेशाय नमः' का प्रयोग होता है। इनके अतिरिक्त राम-सीता, राधा-कृष्ण, पार्वती - परमेश्वर आदि को भी स्मरण किया जाता है। इन मंगलसूचक शब्दों का कोई निश्चित काल निर्धारित नहीं किया जा सकता ।' 2. अलंकरण (Illumination) : पाण्डुलिपिकार द्वारा लिखित ग्रंथ को सुन्दर साज-सज्जा हेतु किसी चित्रकार से अलंकरण करवाया जाता है । फूलपत्ती, बेलबूटों, चित्रों आदि से सज्जित रचना को अलंकरण कहा जाता है । 3. नमस्कार ( Invocation) : नमस्कार या नमोकार को अंग्रेजी में इनवोकेशन (Invocation) कहते हैं । वस्तुत: जिस मंगल- प्रतीक में 'नमो 'कार लगा हो वह इन्वोकेशन या नमोकार ही होता है। इस 'नमोकार' का सबसे प्राचीन उल्लेख खारवेल के हाथी - गुफा अभिलेख में 'नमो अर्हतानाम्' एवं 'नमो सर्व सिद्धानाम्' के रूप में हुआ है। इस संबंध में मुनि पुण्यविजयजी कहते हैं 1. पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 45-46 पाण्डुलिपि-ग्रंथ : रचना-प्रक्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only 59 www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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