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________________ नौ दश ग्यारह बारह तेरह चौदह सहस्र रस, व्याघ्री - स्तन, सुधा - कुण्ड, जैन- पझ, गुप्ति, अधिग्रह । रावण-मुख, अँगुली, दिशाएँ, अवस्था - दश, अंगद्वार, यति-धर्म । पंद्रह सोलह सत्रह अठारह उन्नीस - ज्ञाताध्ययन | बीस शत - 58 रुद्र, अस्त्र, नेत्र, उपांग, ध्रुव, जिनोपासक, प्रतिमा, जिनमतोक्त अंग । राशियाँ, मास, संक्रान्तियाँ, आदित्य, चक्र, राजा, सभासद्, चक्रि, गुह के नेत्र । प्रथम जिन, विश्वेदेव । विद्या - स्थान, स्वर, भुवन, रत्न, पुरुष, स्वप्न, गुण, मार्ग, रज्जु, सूत्र, कुल, कर, पिण्ड, प्रकृति, जीवाजीवोपकरण, स्रोतस्विनी । धार्मिक तिथियाँ, चन्द्रकलाएँ । शशिकला, विद्या- देवियाँ । संयम । पुराण, द्वीप, स्मृतियाँ, विद्याएँ । शम्भु, कर्ण, करशाखा, रावण के नेत्र एवं भुजाएँ, सकल - जन-नख एवं अँगुलियाँ । शतमुख, कमल-दल, रावणांगुलि, जलधि-योजन, शत - पत्र, कीचक, आदिम जिन-सुत, धृतराष्ट्र के पुत्र, जयमाला, मणिहार, स्रज । गंगामुख, अहिपति-मुख, पंकज दल, रविकर, इन्द्रनेत्र, अर्जुनभुज, विश्वामित्राश्रम वर्ष, सामवेद की शाखाएँ, पुण्य-नर-दृष्टि चन्द्र'। 13. अन्य विशिष्ट परम्पराएँ उपर्युक्त दश सामान्य परम्पराओं के अतिरिक्त कुछ अन्य विशिष्ट परम्पराएँ भी हैं । इनका संबंध रचनाकारों में प्रचलित धारणाएँ, विश्वास या मान्यताओं से है । इनमें से कुछ आनुष्ठानिक भावों, टोनों या धार्मिक संदर्भों से संबंधित हैं । 1 इस प्रकार की कुछ परम्पराएँ निम्नलिखित हैं 1. भारतीय साहित्य (अप्रेल, 1957), पृ. 194-196 Jain Education International For Private & Personal Use Only सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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