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________________ 16. 11, ॥ - इन चिह्नों का प्रयोग ग्रंथ की समाप्ति पर दिया जाता है। 17. कभी-कभी पाण्डुलिपियों के अन्त में पूर्णकुंभ' या 'मंगल वस्तु' के निम्न संक्षिप्त चिह्न देखने को मिलते हैं -23. के०, ४. किन्हीं-किन्हीं हस्तलिखित पोथियों में अध्ययन, उद्देश्य, श्रुतस्कंध, सर्ग, उच्छवास, परिच्छेद लंभक एवं काण्ड की समाप्ति पर विभिन्न प्रकार के चित्र बनाने की परम्परा भी है। (झ)अंक मुहर (Seal) : पाण्डुलिपियों के अतिरिक्त दानपत्रों-शिलालेखों को प्रामाणिक बनाने हेतु अंक मुहर (Seal) लगाने की परम्परा थी। () लेखक द्वारा अंक-लेखन (शब्दों में भी) : प्रायः पाण्डुलिपि के लेखक पुष्पिका में समय-सूचक छन्द लिखते रहे हैं । इन छन्दों में अंकों के स्थान पर उसके सूचक शब्दों का प्रयोग किया करते थे। इस प्रकार रचनाकारों ने रचनाकाल-लिपिकाल आदि का द्योतन करने के लिए शब्दों से अंकों का कार्य लिया है। संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश तथा अन्य देशी भाषाओं की पाण्डुलिपियों में शब्दों से अंक सूचित करने की परम्परा मिलती है। मुनि पुण्यविजयजी एवं डॉ. गौरीशंकर ओझा ने इस प्रकार के अंक-सूचक शब्दों की सूची प्रस्तुत की है। ये शब्द प्रायः दाएँ से बाएँ पहले इकाई की संख्यासूचक, फिर दहाई, सैकड़ा एवं हजार की संख्या के बोधक होते थे। जैसे - 7 8 4 1 (1) मुनि वसु सागर सितकर मित वर्षे सम्यकत्व कौमुदी। अर्थात् संवत् 1487 की साल में। । 4 1 8 1 (2) वेद इन्दु गज भू गनित संवत्सर कविवार। श्रावन शुक्ल त्रयोदशी रच्यौ ग्रंथ सुविचारि॥ अर्थात् 1814 वि. सम्वत् किन्तु कहीं-कहीं इसके विपरीत बाएँ से दाएँ इकाई-दहाई आदि की संख्या-सूचक शब्द भी लिखे मिलते हैं। जैसे - पाण्डुलिपि-ग्रंथ : रचना-प्रक्रिया 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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