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(छ) छूटे हुए लिप्यांश की पूर्ति के चिह्न : यह प्रथम प्रकार के संशोधन - पतितपाठ - जैसा ही है । इसे हंस-पग, मोर-पग या काक-पद भी कहते हैं । जहाँ लिपिकर्ता से भूलवश कोई पद, शब्दांश या वाक्यांश लिखने से छूट गया है; ऐसे पाण्डुलेख एवं शिलालेखों में पतित - पाठ के चिह्न लिख कर छूटा हुआ अंश पंक्ति के ऊपर या हाशिये में लिख दिया जाता है। कहीं-कहीं इन चिह्नों के अलावा या +, अथवा स्वस्तिक चिह्न भी बनाए जाते हैं । जिन शब्दों का अर्थ प्रतिलिपिकार को स्पष्ट नहीं होता है तब 'कुंडल' ( 0 ) का चिह्न बना दिया जाता है या कुंडल से उस अंश को घेरा लगा दिया जाता है ।
(ज) संकेताक्षर या संक्षिप्त चिह्न (Abbreviations ) : हमारे देश में आंध्रों और कुषाण काल से पाण्डुलिपियों एवं शिलालेखों में संकेताक्षरों के प्रयोग की परम्परा देखने को मिलती है। ये संक्षिप्त चिह्न या संकेताक्षर निम्नलिखित 17 बताये गये हैं, जो निम्नप्रकार हैं
1. सम्वत्सर के लिए सम्व, संव, सं या स.
2. ग्रीष्म-ग्री. (गृ.) गै. गि. या गिग्हन 3. हेमन्त - हे.
4. दिवस - दि.
5. शुक्ल पक्ष दिन - सु. सुदि. या सुति. । शुक्ल पक्ष को शुद्ध भी कहा जाता है ।
6. बहुल पक्ष दिन - ब., ब. दि., या बति.
7. द्वितीय-द्वि.
8. सिद्धम् - ओ. श्री. सि.
9. राउत - रा.
10. दूतक - दू. (संदेशवाहक या प्रतिनिधि)
11. गाथा - गा.
12. श्लोक - श्लो.
13. पाद- पा.
14. ठक्कुर - ठ.
15. एद. ॥ या एर्द. ॥ 'ओंकार' (ॐ) का चिह्न 'ओं. '
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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