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________________ दाएँ से बाईं ओर, नागरी लिपि (ब्राह्मी) में बाएँ से दाहिनी ओर, और कहींकहीं ब्राह्मी लिपि में बाएँ से दाएँ और पुनः दाएँ से बाएँ लिखने के प्रयोग भी मिलते हैं। स्वात के एक लेख में खरोष्ठी लिपि नीचे से ऊपर की ओर लिखी गई भी मिलती है। (ख) पंक्तिबद्धता : पंक्तिबद्धता से अर्थ है लिपि के अक्षरों की माप। मौर्यकालीन शिलालेखों से यह प्रकट होता है कि प्रायः प्रत्येक अक्षर लम्बाईचौड़ाई में समान माप का होता है तथा सभी अक्षर बाएँ से दाएँ, पंक्तिबद्ध, सीधीपड़ी रेखाओं में लिखे जाते थे। (ग) मिलित शब्दावली : प्राचीनकाल में हस्तलिखित ग्रंथों में सभी शब्द एक दूसरे से मिलाकर एक ही पंक्ति में लिखे जाने की परम्परा थी। यूनान में भी यही परम्परा थी। अलग-अलग शब्दों में लिखने की परम्परा का प्रारंभ 11वीं शताब्दी की पाण्डुलिपियों से देखने को मिलता है। (घ) विराम-चिह्न : प्राय: मिलित शब्दावली की परम्परा में विराम-चिह्नों का अभाव रहता है। हमारे देश में पाँचवीं शताब्दी ई.पू. से ईस्वी सन् तक केवल एक विराम-चिह्न - दंड या एक आड़ी लकीर(।) - का प्रयोग मिलता है । इसके अतिरिक्त बाद में निम्नलिखित विराम-चिह्नों का प्रयोग भी मिलता है - I,1,T, 10,1,HI,mT,"-,,),०२,००. कुछ पाण्डुलिपियों में विराम-चिह्नों के साथ मंगलचिह्न एवं अंक का भी प्रयोग विराम-चिह्न की तरह किया गया मिलता है। (ङ) पृष्ठ संख्या : प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों में पृष्ठ की बनिस्बत पन्ने के अंक दिए जाने की परम्परा मिलती है । ताम्रपत्रों में भी यही परम्परा थी। यह संख्या पन्ने की पीठ वाले पृष्ठ पर (सांक पृष्ठ पर) अंकित की जाती थी। यह पृष्ठ संख्या किस रूप में डाली जाती थी? इसे स्पष्ट करते हुए मुनिश्री पुण्यविजय जी कहते हैं - "ताड़पत्रीय जैन पुस्तकों में दाहिनी ओर ऊपर हाशिये में अक्षरात्मक अंक और बायीं ओर अंकात्मक अंक दिये जाते थे। जैन छेद आगमों और उनकी चूर्णियों में पाठ, प्रायश्चित्त, भंग आदि का निर्देश अक्षरात्मक अंकों में करने की परिपाटी थी।" 1. भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखन कला, पृ. 62 पाण्डुलिपि-ग्रंथ : रचना-प्रक्रिया 45 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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