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________________ वदि 12 सुकर वा (र) संवत् 1861 पोथी लीषतं रूपराम पठनार्थ रूपरामजी वेटो चोषा विरामण को ।" इस प्रकार किसी भी प्रति के पाठ - सम्पादन के समय उपर्युक्त प्रकार से उद्देश्य जानना आवश्यक है, जिससे प्रति की तुलनात्मक विश्वसनीयता का पता लग सकेगा। 10. 'उद्देश्य' के कारणों से होनेवाली पाठ-संबंधी विकृतियाँ 'उद्देश्य' लिखने के उपर्युक्त कारणों से होनेवाली भूलों की संभावना निम्न प्रकार से की जा सकती है 1. यदि प्रति, प्रतिलिपिकर्ता के गुरु से संबंधित या गुरु की ही है तो उसमें श्रद्धावश या साम्प्रदायिक भावना के अनुसार प्रतिलिपिकर्ता कुछ नया या जोड़-तोड़ पूर्ण लिख सकता है। 2. प्रति किस गाँव या घर में लिपिबद्ध की गई है इससे भी लिपिकर्ता अपना कोई संबंध जोड़ लेता है, जैसे- उस गाँव में रहने वाले अधिसंख्यक लोग किसी एक ही जाति के हैं और लिपिकर्ता भी उसी जाति का है तो वह कवि या रचनाकार विशेष को भी उसी जाति का लिख सकता है । 3. किस डेरे या सांथरी की शिष्य परम्परा से संबंधित भूलें भी स्वाभाविक हैं । यानी 'डेरे' से गद्दीधारी महन्त, उनके गुरु एवं सम्प्रदाय की मान्यताओं का जिक्र होगा। 'सांथरी' वाली स्थिति में पहले गुरु और उनके शिष्य का नामोल्लेख होगा और 'देश' का नाम लिखने वाला किसी दूसरे प्रान्त का होगा । 4. समय, यात्रा, मन्दिर आदि से अभिप्राय यह है कि इनके संदर्भ में भावुक लिपिक मूलपाठ को तोड़-मरोड़कर लिख सकता है। 5. किसके आदेश या कहने से अभिप्राय यह है कि इस बहाने कहनेवाले की पूर्वज - परम्परा का समावेश भी लिपिक कर सकता है । 6. किसके लिए या भेंट करने के लिए तैयार प्रति में लिपिक दुरूहता को कम करने एवं सरल करके लिखने की प्रवृत्ति के कारण जानबूझकर या सचेष्ट विकृतियाँ प्रस्तुत कर सकता है । 42 Jain Education International सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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