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चाहिए। कभी-कभी ऐसा भी लिखा मिलता है कि 'उद्देश्य' लिखा तो प्रारंभ के पन्ने पर है; किन्तु समाप्ति पुष्पिका के अन्त में की गई है। 9. 'उद्देश्य' क्यों लिखा जाता है?
निरुद्देश्य कोई प्रति नहीं लिखी जाती है। अतः देखना यह है कि उद्देश्य में क्या लिखा रहता है? या प्रतिलिपिकार 'उद्देश्य' क्यों लिखता है? इससे जानबूझकर या सचेष्ट की गई विकृतियों का पता लगाया जा सकता है। उद्देश्य' निम्न कारणों से लिखा जाता है - (क) लिपिकर्ता किसका शिष्य है? (ख) लिपिकर्ता ने किस गाँव या घर या निवास स्थान पर प्रति लिखी है? (ग) लिपिकर्ता ने किस डेरे या सांथरी या देश (क्षेत्र-विशेष) में प्रति लिखी? (घ) लिपिकर्ता ने किस समय में या यात्रा में या मंदिर में या किसके सान्निध्य
में, या किस अवसर (अक्षय तृतीया, गणेश चतुर्थी, दशहरा आदि) पर
प्रति लिखी? (ङ) लिपिकर्ता ने किसके आदेश या कहने या प्रार्थना करने पर प्रति लिखी? (च) लिपिकर्ता ने किसके लिए या किसे भेंट करने के लिए या पाठ करने के
लिए या पढ़ने के लिए या संग्रह के लिए या सुनाने के लिए प्रति लिखी? (छ) लिपिकर्ता ने स्वपठनार्थ या संग्रह के लिए प्रति लिखी। (ज) लिपिकर्ता ने किस जर्जर या नष्टप्रायः प्रति के बदले में प्रति लिखी? (झ) लिपिकर्ता किस प्रकार के गुरु के शिष्य थे? पिता, दीक्षा गुरु या
सम्प्रदायगत गुरु? एक उदाहरण द्वारा इन कारणों के उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास किया जा सकता है। लालदासी सम्प्रदाय की वाणी' (मूलवाणी) (सम्पादक डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा एवं डॉ. राकेशकुमार शर्मा) की पुष्पिका में लिपिकर्ता ने अपना 'उद्देश्य' इस प्रकार प्रस्तुत किया है -
"इति श्री लालदासजी का नुकता साषी भजन संपूर्ण समापितौ पोथी लीषतं रूपराम विरामण अलवर ग(ढ) मध्ये राजाधिराज्य राव वषतावर सिंघ मीती चैत
पाण्डुलिपि-ग्रंथ : रचना-प्रक्रिया
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