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6. अक्षर निकालने (delete करने) की विधि -
1. अक्षर के ऊपर के के इस प्रकार का चिह्न बनाया जाता है। 2. अक्षर शिरोरेखा से रहित छोड़ दिया जाता है = कालम।
3. अक्षर के ऊपर हरताल (पीला रंग) या सफेदा लगा देते हैं। 7. अधिक अक्षर या पाठ निकालना (delete करना) हो तो उन अक्षरों/पाठ
के आदि और अंत में इस प्रकार तेणंकालेणं, का चिह्न बनाया जाता है। 8. पंक्ति के अंत में यदि थोड़ी जगह बच गयी हो तो वहाँ पर इस प्रकार
के दंड का चिह्न बनाते हैं । उसको निकाला हुआ (delete किया हुआ) ही समझना चाहिए। फुदड़ी की शोभा बढ़ाने के लिए भी इस प्रकार के दंड का चिह्न बनाया जाता है।
9. । इस प्रकार ह्रस्व इकार पंक्ति के अन्त में बनाकर उसका अक्षर दूसरी
पंक्ति में भी लिखा जाता है और 'आ' की मात्रा दीर्घ ई पंक्ति के बाहर
मार्जिन में अथवा दूसरी (=अगली) पंक्ति में भी लिखी जाती है। 10. पूर्णविराम के लिए इसप्रकार का = । ' दंड होता है। 11. गाथा या श्लोक के पूर्ण हो जाने पर इस प्रकार = — ॥ ' दो दंड होते हैं। 12. ग्रंथ के आदि में ए ६०' या द०' जो चिह्न रहता है वह मंगलसूचक है
(= आदि मंगल का सूचक) और उसको भली मींडु' कहते हैं। 13. ग्रंथ की समाप्ति या प्रकरण की समाप्ति पर “I !" इसप्रकार छ' का
चिह्न लिखा जाता है जो कि ग्रंथ या प्रकरण की समाप्ति का सूचक है। 14. 'त' औ '' = (छ) के योग/संयुक्त होने पर उसको 'त्य' पढ़ा जाना
चाहिए। 15. 'स' और 'छ' जब संयुक्त हो तो उसे 'स्थ' पढ़ा जाना चाहिए। 16. प्राचीन पुस्तकों में जिस अक्षर के ऊपर रेफ = S, आता है उस अक्षर
का द्वित्व कर देते हैं - 'धर्म' = 'धर्म'।
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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