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अक्षर में अनुस्वार 'कं'
क इस विधि से भी लिखा जाता है । विसर्ग के दो बिन्दुओं के स्थान पर खड़ी पंक्ति की तरह दो टुकड़े भी किए गए मिलते हैं - 'क: ' क
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संयुक्ताक्षर - इसके बाद क्रम से निम्नानुसार संयुक्ताक्षर लिखे गए हैं। एक ही वर्ग के अक्षरों के जोड़ने का जो बदला हुआ स्वरूप है, वह लिखा गया है । तीसरे खाने में 'ल' और 'व' को ऊपर नीचे जोड़ना, 'त' के साथ संयुक्ताक्षर, 'यकार' और 'रकार' जोड़ना, 'ल' और 'व' के साथ संयुक्त होनेवाले अक्षर, तीन वर्णों के संयुक्त होने पर परिवर्तन को प्राप्त प्रयोग, जैसे कि 'क्ष', 'ष्ण', 'स्थ', ॐ, ह्रीं श्रीं आदि का प्राचीन रूप बताया गया है । इसके बाद पुस्तकों के प्रारंभ में आने वाला ‘भले मींडु' (मंगल का प्रतीक चिह्न) = ||६|| और अंत में पूर्णता का सूचक 'छ' है ।
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1. कोई शब्द दो बार लिखना हो तो शब्द के बाद दो का अंक (2) लिखने में आता है । 'बार बार' लिखना हो तो = वार 2 इस विधि से लिखा जाता है ।
2. लेखक की भूल से रह गई आ की मात्रा, ह्रस्व इ और दीर्घ ई की मात्रा क्रमश: इस प्रकार बनायी जाती है, 'वा' = र्व', पति = पत्ते, भीम = लम
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3. यदि अक्षर आगे-पीछे लिखा गया हो तो अक्षर के ऊपर क्रम से पढ़ने के लिए अंक बनाया जाता है कमल कले मे
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4. अक्षर या पाठ यदि भूल से नहीं लिखा गया हो तो AXV इनमें से कोई भी एक चिह्न बनाकर, बाहर मार्जिन में वह अक्षर या पाठ लिखा जाता है। बहुधा उस पाठ को लिखने के बाद नं ०४ (ओली ४) या पं. ४ (चौथी पंक्ति) लिखा जाता है। यदि ऊपर वाली मार्जिन में ओली ४ या पंक्ति ४ लिखा हो तो ऊपर से पंक्ति की गिनती करनी चाहिए। यदि नीचे की मार्जिन में हो तो पंक्ति को नीचे की तरफ से गिनना चाहिए ।
5. छूटा हुआ पाठ x इस प्रकार का चिह्न बनाकर नीचे की पंक्ति में भी लिखा जाता है और उस पाठ के दोनों तरफ x - इस प्रकार का चिह्न होता है।
पाण्डुलिपि-ग्रंथ : रचना-प्रक्रिया
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