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________________ प्राचीन पाण्डुलिपियों एवं आधुनिक मुद्रण में प्रयुक्त 'नागरीलिपि' की वर्णमाला में जो परिवर्तन हुए हैं, उन्हें आगे दर्शाए गये दो चार्टों में समझाने का यत्न किया है। प्रथम चार्ट में तीन खाने हैं - जिनमें प्रथम खाने में स्वर, अनुस्वार और विसर्ग दिए गए हैं। इनमें पहला वर्ण या अक्षर आधुनिक मुद्रण में प्रयुक्त होने वाला है और उसके सामने 15वीं से 20वीं शताब्दी के मध्य लिखित पाण्डुलिपियों में प्रयुक्त अक्षर हैं। दूसरे चार्ट में पहले घर (धा) दिया गया है । यद्यपि शिरोरेखा के बिना कोई भी अक्षर होता है तो वह निकाला हुआ माना जाता है, पर इसमें (ध) केवल अपवाद है। शिरोरेखा के बिना में आ की मात्रा घा इस तरह तिरछी रेखा के द्वारा जोड़ी जाती थी और जब छ की शिरोरेखा बननी शुरू हुई तब धा इस तरह हो जाने पर पहली तिरछी रेखा भी प्रयुक्त होती रही। अक्षरों में ह्रस्व इ की मात्रा जोड़ने की तीन विधियाँ हैं - कि कि कि। दीर्घ ई की मात्रा की इस विधि से जोड़ी जाती है। रेफ के साथ दीर्घ ई की मात्रा 'र्की' जोड़ते समय की इस प्रकार लिखा जाता है। 'क' में ह्रस्व 'उ' की मात्रा तीन प्रकार से जोड़ी जाती है - कु कु कु। दंडवाले अक्षरों में यह मात्रा रख 77 इस विधि से भी जोड़ी जाती है। कितने ही अक्षरों में ह्रस्व तथा दीर्घ 'उ' 'ऊ' की मात्रा जोड़ते समय उनके रूप बदल गए हैं । उदाहरणस्वरूप 'तु' = 3, 'तू' = तू, 'दु' = दु, 'दू' - ५, 'शु' = भु, 'शू' - भू, 'हु' = 5, 'हू' - कू आदि। दीर्घ 'ऊ' की मात्रा इस विधि से भी जोड़ी जाती है - 'कू' = लू, 'सू' = सू , 'वू' = तू । ___'ऋ', 'ऋ की मात्रा जोड़ते समय 'त' इस रीति से लिखा जाता है - 'तृ' = 2, 'तृ' । 'ए' की मात्रा अक्षर के पहले लिखी जाती है और यह ‘पृष्ठ मात्रा' या 'पडिमात्रा' कहलाती है – 'के' = (C। उसी प्रकार से कै' = (के, 'को' = (का, कौ = (को लिखा जाता है । अक्षर के पहले दो मात्राएँ कभी भी नहीं लिखी जाती हैं । एक पहले और एक ऊपर इस तरह से लिखी जाती हैं - कै = (के। 32 सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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