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उन्हें पढ़कर लेखक उनका अभिप्राय बताता था। एक बार एक राजा ने किसी उपाध्याय के बारे में पत्र लिखा था कि उसे सुगंधित उबले चावल, घी तथा मषी (दाल) भोजन में दी जाये। लेखक ने पत्र पढ़ते समय 'मषी' का अर्थ काली स्याही लिया। अर्थात् कोयले की काली स्याही घी में घोलकर चावल के साथ खाने को दी जाये । इस प्रकार अर्थ का अनर्थ हो गया। लेखक या लिपिक के असावधानीपूर्ण लेख का एक उदाहरण और देखें। एक बार एक सेठ के मुनीम ने उनके घर पर लिख कर भेजा कि - "आज सेठजी अजमेर गये हैं, बड़ी बही को लेते आना।" इस पंक्ति के पाठक ने इसे यों पढ़ा - "आज सेठजी मर गए हैं; बड़ी बहू को लेते आना।" आपने देखा कि अजमेर गये को 'आज मर गये' एवं 'बही' को 'बहू' पढ़ने से क्या से क्या हो गया? 7. पाण्डुलिपि की भूलों के निराकरण का उद्देश्य
किसी पाण्डुलिपि में प्राप्त लिपिगत विकृतियों का संबंध लिपिकर्ता से ही होता है। अतः पाण्डुलिपि वैज्ञानिक को पाण्डुलिपि सम्पादन करते समय उन सभी संभव-भूलों का निराकरण करना आवश्यक होता है। इन भूलों का निराकरण मुख्यतया मूल प्रति के उद्देश्य' से किया जाता है। पाठालोचन विज्ञान में इन पाठ-संबंधी भूलों या समस्याओं का निराकरण करना होता है। 8. प्रतिलिपि में विकृतियाँ : क्यों और कैसे?
डॉ. सत्येन्द्र के अनुसार किसी पाण्डुलिपि में लिपिगत विकृतियाँ लिपिकर्ता द्वारा निम्न प्रकार से की जाती हैं : (क) जानबूझकर (या सचेष्ट) (ख) अनजाने में (या निस्चेष्ट) (ग) उभयात्मक
इस प्रकार की विकृतियाँ निम्न कारणों से की जाती हैं - (अ) मूलपाठ में कुछ वृद्धि करने के लिए। (आ) मूलपाठ में कुछ कमी दर्शाने के लिए। (इ) मूलपाठ के स्थान पर स्वैच्छिक पाठ रखने के लिए। 1. पाण्डुलिपिविज्ञान, पृ. 26
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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