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________________ आसपास की 'श्रीरामपरत्व ग्रंथ की टीका' (ब्रह्मदास कृत), रामोपासना आदि ग्रंथों के लिपिकर्ता ब्राह्मण इन्द्रमणि ही रहे हैं ।' I भारतीय परम्परा में इस शब्द (लेखक) का प्रयोग चौथी शती ईसा पूर्व में मिलता है । इसके अन्य पर्यायवाची शब्द हैं- लिपिकार, लिबिकार या दिपिकार । अशोक के अभिलेखों में यह शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है 1. लेखक, 2. शिलाओं पर लेख उत्कीर्ण करने वाला मनुष्य । अमरकोष में लेखक और लिपिकार को पर्यायवाची माना है । पाणिनि की अष्टाध्यायी के आधार पर डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल 'लिपि' का अर्थ 'लेखन' और 'लेख' बतलाते हैं । इस प्रकार पाणिनि ने ग्रंथ, लिपिकार, यवनानी लिपि आदि शब्दों का प्रयोग किया है । 'India as known to Panini' में डॉ. अग्रवाल विश्वासपूर्वक कहते हैं. "Thus it is certain that lipi in the time of Panini meant writing and script."" ww 112 3. लेखक - लिपिकर्ता (लिपिकार) के गुण भारतीय प्राचीन पुराणों में लेखक के गुणों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है । मत्स्यपुराण, अध्याय 189 में कहा है सर्व देशाक्षराभिज्ञः सर्वशास्त्र विशारदः । लेखक: कथितो राज्ञः सर्वाधिकरणेषु वै ॥ 26 इसी प्रकार 'गरुड़ पुराण' में कहा है - मेधावी वाकपटुः प्राज्ञः सत्यवादी जितेन्द्रियः । सर्वशास्त्र समालोकी ह्येष साधुः स लेखकः ॥ उपर्युक्त श्लोकों में लेखक के दो महत्त्वपूर्ण गुणों का उल्लेख किया गया है - 'सर्वदेशाक्षराभिज्ञ: ' - अर्थात् समस्त देशों के अक्षरों (लिपि) का ज्ञान और साथ ही 'सर्वशास्त्र समालोकी' - अर्थात् समस्त शास्त्रों में लेखक की समान गति होनी चाहिए। एक पाण्डुलिपि वैज्ञानिक में ये गुण किसी न किसी मात्रा में होने ही चाहिए । 'शार्ङ्गधर पद्धति' में भी यही बातें कही गई हैं। ' पत्रकौमुदी' 1. श्रीरामपरत्वम् : महात्मा ब्रह्मदास कृत, सम्पा. डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा, कोटपूतली 2. India as known to Panini, Dr. V. S. Agarwal, Vol. II, Ch. 5, pp 311. सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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