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________________ 6. वेष्ठन - छंदजु (आच्छादन) 7. ग्रंथि - टिकुली या गाँठ प्रायः ताड़पत्रादि की पाण्डुलिपियों में बीच में छेद कर डोरी पिरोई जाती है। इस डोरी के दोनों छोरों पर लकड़ी, हाथीदाँत, सीप या नारियल की गोल टिकुली में डोरी पिरोकर गाँठ दी जाती है । यह गाँठ ही टिकुली या ग्रंथि कहलाती है । 8. हरताल या हड़ताल - पाण्डुलिपि में हुए गलत लेखन या असावधानीपूर्ण हुए लेखन को मिटाने के लिए 'हड़ताल ' या ' हरताल' का प्रयोग किया जाता है । 3. लिपि और लिपिकर्ता : यह पाण्डुलिपि-ग्रंथ-रचना-प्रक्रिया का तीसरा महत्वपूर्ण पक्ष है । कभी-कभी लेखक और लिपिकर्ता एक ही होते हैं । तब लिपिकर्ता या लिपिकार एवं लेखक पर्यायवाची माने जाते हैं; लेकिन दोनों को ही लिपि का पूर्ण ज्ञान एवं उसका अभ्यास अवश्य होना चाहिए। प्राचीन काल में ऐसे लेखक या लिपिकर्ताओं के लिए निर्देश - ग्रंथ भी लिखे मिलते हैं; जैसे - लेख पंचाशिका, क्षेमेन्द्र व्यास दास कृत लोक - प्रकाश, वत्सराज सुत हरिदास कृत लेखक मुक्तामणि एवं सन् 1418 में रचित महाकवि विद्यापति कृत 'लिखनावली' ऐसे ही निर्देश ग्रंथ हैं । 2. लेखक और लिपिकर्ता 'लेखक' शब्द का प्रयोग लिखनेवाले के अर्थ में प्राचीनकाल से व्यवहृत होता आया है । अनेक प्राचीन ग्रंथों में 1 इसका उल्लेख हुआ है। सांची स्तूप के एक शिलालेख में 'लेखक' शब्द का प्राचीनतम उल्लेख प्राप्त होता है । यद्यपि यहाँ 'लेखक' शब्द से 'लेखन - व्यवसाय में लगे' व्यक्ति का ही अभिप्राय है; किन्तु डॉ. बूहर ने इस शिलालेख का अनुवाद करते समय इस शब्द का अर्थ 'कापीइस्ट ऑव मैन्युस्क्रिप्ट्स' (Copyist of Mss.) या राइटर, क्लर्क ही दिया है। वस्तुतः प्रारंभ में 'लेखक' शिलालेखों पर उत्कीर्ण किये जाने वाले प्रारूप तैयार करते थे। बाद में लेखक को पाण्डुलिपि तैयार करने का कार्य भी दिया जाने लगा था । लेखन - व्यवसाय में अधिकांशतः ब्राह्मण या कायस्थ वर्ग ही संलग्न रहता था । प्राचीन मन्दिरों या ग्रंथागारों में इन लेखकों की नियुक्ति ग्रंथलेखन हेतु की जाती थी । हमारे संग्रह में ऐसी अनेक पाण्डुलिपियाँ देखने में आई हैं, जिनका लिपिकर्ता या लिपिकार 'ब्राह्मण इन्द्रमणी' रहा है । वि.सं. 1855 के पाण्डुलिपि-ग्रंथ : रचना-प्रक्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only 25 www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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