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पाण्डुलिपियों में भी इसका इतस्तः प्रयोग मिलता है। कहने का अभिप्राय यह है कि पाण्डुलिपि विज्ञान में काव्यशास्त्र वहीं तक सहायक है जहाँ तक वह पाण्डुलिपि की विषय-वस्तु को समझने-समझाने में सहायक है। ____7. पुस्तकालय विज्ञान : प्राचीनकाल में राजकीय या व्यक्तिगत पुस्तकालयों में पाण्डुलिपियों का ही भण्डारण होता था। नालंदा, तक्षशिला, अलेकजेण्डिया आदि स्थानों पर प्रसिद्ध हस्तलिखित या पाण्डुलिपियों का अतुल भण्डार था। छापाखाने के प्रचलन के बाद भी पाण्डुलिपियों का रख-रखाव पुस्तकालयों में होता रहा है । आजकल 'आधुनिक हस्तलेखागारों' का एक नया आन्दोलन चला है। इन पुस्तकालयों में सरकारी, औद्योगिक, महान व्यक्तियों के किसी भी प्रकार के हस्तलेख, जैसे - पत्र, डायरी, विवरण, नत्थियाँ आदि सुरक्षित रखे जाते हैं। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन से संबंधित व्यक्तियों की लिखित सामग्री ऐसे ग्रंथागारों में सुरक्षित रखी गई है, जो समय-समय पर शोधकर्ताओं को उपलब्ध करवाई जाती है। अतः पाण्डुलिपि विज्ञान की दृष्टि से पुस्तकालय विज्ञान का अत्यधिक महत्व है। बड़े-बड़े संग्रहालयों एवं अभिलेखागारों के लिए भी इस विज्ञान का महत्व स्वयंसिद्ध है।
अत: डॉ. सत्येन्द्र के शब्दों में कहा जा सकता है कि - "हस्तलेखों और पाण्डुलिपियों को किस प्रकार व्यवस्थित किया जाए, कैसे उनकी पंजिकाएँ रखी जायें, कैसे उनकी सामान्य सुरक्षा का ध्यान रखा जाए, कैसे उन्हें पढ़ने के लिए दिया जाए आदि बातें वैज्ञानिक विधि से पुस्तकालय-विज्ञान ही बताता है।" डॉ. रुथ बी. बोर्दिन एवं राबर्ट एम. वार्मर ने अपनी पुस्तक 'द मॉडर्न मैन्युस्क्रिप्ट लाइब्रेरी' में कहा है - "मैन्युस्क्रिप्ट या पाण्डुलिपि पुस्तकालय का अस्तित्व ही अनुसंधाता और विद्यार्थी की सेवा करने के लिए होता है।''
8. इतिहास : इतिहास की आवश्यकता प्रायः प्रत्येक ज्ञान-विज्ञान को होती है। इस दृष्टि से लिपि-विज्ञान का भी इतिहास से घनिष्ठ संबंध है; क्योंकि प्रत्येक पाण्डुलिपि की पृष्ठभूमि का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इतिहास की आवश्यकता पड़ती है।
1. पाण्डुलिपि विज्ञान, पृ. 14 2. द मॉडर्न मैन्युस्क्रिप्ट लाइब्रेरी, पृ. 14
सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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