SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की किसी समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकती है। इस प्रकार भाषा-विज्ञान और पाण्डुलिपि विज्ञान एक-दूसरे के सहायक कहे जा सकते हैं। 4. ज्योतिष : किसी भी पाण्डुलिपि के काल-निर्णय की समस्या का सटीक हल ज्योतिष के द्वारा ही हो सकता है। ज्योतिष के पंचांग, कलैण्डर, जंत्रियाँ आदि इस विषय में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं । दिन, तिथि, संवत्, सन्, मुहूर्त, नक्षत्र, ग्रह, करण आदि का निदान ज्योतिष के द्वारा ही संभव है। पाण्डुलिपि विज्ञान एवं इतिहास के लिए ज्योतिष का ज्ञान परमावश्यक है। कहने का अभिप्राय यह है कि किसी प्राचीन लिपि के काल-निर्णय की जटिल से जटिल समस्या का निदान ज्योतिष के द्वारा संभव है। 5. पुरातत्व : पुरातत्व का विज्ञान वर्तमान सदी में अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है । इसे अंग्रेजी में आर्योलोजी (Archaelogy) कहते हैं । इसके अध्ययन क्षेत्र में शिलालेख, चट्टानलेख, मुद्रालेख, ताम्रपत्रादि अनेक प्रकार की सामग्री आती है जिसका उपयोग पाण्डुलिपिविज्ञान भी करता है । पुरातत्व द्वारा उद्घाटित बहुत-सी प्राचीन सामग्री का उपयोग पाण्डुलिपि वैज्ञानिक को भी करना पड़ता है। ऐसे बहुत से प्राचीन महत्वपूर्ण हस्तलेख हमें पुरातत्व से ही प्राप्त हुए हैं। मिश्र के पेपीरस, सुमेरियन सभ्यता के ईंट-लेख, मोहनजोदड़ो की मुद्राएँ, अशोक के शिलालेख, अंगई खेड़े से प्राप्त ईंटों के ब्राह्मी लेख आदि पुरातत्व के द्वारा ही उद्घाटित हुए हैं । इस प्रकार पाण्डुलिपि विज्ञान और पुरातत्व एकदूसरे के अत्यधिक सहायक हैं। ... 6. काव्यशास्त्र (साहित्यशास्त्र) : काव्यशास्त्र के चार अंग हैं - शब्दार्थ, रस, छंद एवं अलंकार । पाण्डुलिपि विज्ञान के अध्येता के लिए इन चारों का ही ज्ञान होना आवश्यक है। इनमें प्रथम शब्दार्थ है । भाषा-विज्ञान और लिपि-विज्ञान में शब्दार्थ का ज्ञान अत्यावश्यक है। काव्यशास्त्र में अर्थ तक पहुँचने के लिए शब्दशक्तियों का विशेष महत्व है। दूसरा रस है। यद्यपि पाण्डुलिपि विज्ञान में इसका स्थान गौण है फिर भी काव्य में नवरसों की प्रतिष्ठा है। इसलिए साहित्यिक पाण्डुलिपि के लिए 'रस' का ज्ञान आवश्यक है। तीसरा छन्द है। प्राचीनकाल में ग्रंथ-रचना पद्य में ही होती थी। पद्य रचना को पढ़ने के लिए छन्द-ज्ञान आवश्यक माना जाता था। चौथा अलंकार है। काव्यशास्त्र में तो इसका महत्व है ही, किन्तु - - - 10 सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy