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सामने आती हैं। इसी के द्वारा हम विश्व की समस्त लिपियों के स्वरूप से परिचित होते हैं ।
व्यावहारिक दृष्टि से पेलियोग्राफी ( लिपि - विज्ञान) के दो भेद हैं (1) ऐपीग्राफी (Epigraphy) अर्थात् अभिलेख लिपि - विज्ञान, (2) पेलियोग्राफी (Palaeography) अर्थात् लिपि - विज्ञान। ऐपीग्राफी के द्वारा हम प्राचीन कठोर लिप्यासन पर लिखित अभिलेखों का अध्ययन करते हैं, जो शिलाओं, धातुओं तथा मिट्टी से बनी सामग्री पर खोदकर, काटकर या डालकर प्रस्तुत किये जाते हैं। इसके द्वारा अज्ञात लिपियों का उद्घाटन (Decipherment) तथा उनकी व्याख्या की जाती है ।
पेलियोग्राफी के द्वारा हम कोमल लिप्यासन पर चित्रित लेखन को अध्ययन करने का प्रयत्न करते हैं; जैसे - कागज, चमड़ा, पेपीरस, लिनेन और मोमपट्ट (Postherds) पर अंकित किया गया है या उतारा गया है । यह क्रिया शलाका, कूँची, सेंटा या कलम के द्वारा की जाती है । इन दोनों विज्ञानों में मोटा अन्तर केवल लिप्यासन के कोमल या कठोर होने में ही निहित है ।
3. भाषा - विज्ञान : भाषा - विज्ञान से तात्पर्य भाषा के विज्ञान से है । पाण्डुलिपि के विश्लेषण के बाद उसकी भाषा को समझना बहुत महत्वपूर्ण है । भाषा - विज्ञान के द्वारा लिपि का उद्घाटन करने में अत्यधिक सहायता मिलती है । पाण्डुलिपि की विषय-वस्तु का ज्ञान भाषा के बिना नहीं होता है । भाषाविज्ञान के द्वारा सर्वथा अज्ञात लिपि एवं उसकी अज्ञात भाषा का अनुमान लगाया जा सकता है । यद्यपि ऐसी लिपि जिसके लिखने के ढंग और उसकी भाषा का पता न हो, उद्घाटित नहीं की जा सकती। हाँ एक उदाहरण अवश्य है, माइकेल बेंट्रिस ने क्रीट की लाइनियर बी का, जो क्रीट की एक भाषा थी, का उद्घाटन अवश्य किया था।
भाषा - विज्ञान के द्वारा ही पाण्डुलिपि में प्रयुक्त भाषा का ज्ञान किया जा सकता है। इसके द्वारा उस ग्रंथ की भाषा के व्याकरण, शब्दरूप, वाक्यविन्यास एवं शैली का ज्ञान भी होता है। भाषा ज्ञान होने के उपरान्त हम पाण्डुलिपि के क्षेत्र का भी पता लगा सकते हैं। कई बार पाण्डुलिपि की भाषा भी भाषा - विज्ञान
सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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