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लेखन से अभिप्राय है - ग्रंथ-रचना-प्रक्रिया, जिससे वह पाठक तक पहुँच सके। लेखन के द्वारा मानव-अभिव्यक्ति युग-युगों तक सुरक्षित रहती है। लेखक, अपने कथ्य को भाषा में लिपिबद्ध कर लेखनी से लिप्यासन पर अंकित कर, उसे पाण्डुलिपि का रूप प्रदान करते हुए पाठक तक पहुँचता है । इस प्रकार लेखक और पाठक के मध्य उठी समस्याओं के समाधान का एक महत्वपूर्ण साधन है - पाण्डुलिपि। इसी में पाण्डुलिपि विज्ञान की उपादेयता निहित है। 7. पाण्डुलिपिविज्ञान की आवश्यकता
'आवश्यकता आविष्कार की जननी है' - इस सिद्धान्त के द्वारा अब यह सिद्ध हो गया है कि देश भर में पुराने और नए अनेक हस्तलिपि भण्डार फैले हए हैं, जिनकी पाण्डुलिपियों के वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी है। जिस प्रकार भाषाविज्ञान, पाठालोचन, पेलियोग्राफी और ऐपीग्राफी के वैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता के कारण ही वे विज्ञान कहलाए, उसी प्रकार 'पाण्डुलिपि विज्ञान भी वह विज्ञान है जो अध्येता को, पाण्डुलिपि को पाण्डुलिपि के रूप में समझने एवं तद्विषयक समस्याओं के वैज्ञानिक निराकरण में सहायक सिद्ध होता है।' 8. पाण्डुलिपिविज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध । __ पाण्डुलिपिविज्ञान को समझने के लिए अन्य कई सहायक विज्ञानों के समझने की भी आवश्यकता है। इस प्रकार के विज्ञान निम्नलिखित हैं : 1. डिप्लोमैटिक्स 2. पेलियोग्राफी 3. भाषाविज्ञान 4. ज्योतिष 5. पुरातत्व 6. काव्य-शास्त्र (साहित्य-शास्त्र) 7. पुस्तकालय विज्ञान 8. इतिहास 9. शोध-प्रक्रिया विज्ञान 10. पाठालोचन विज्ञान।
सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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