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में स्याही और लेखनी का निर्माण भी अलग अध्ययन के विषय हैं । इन सबके सम्मिलित प्रयास से एक ग्रंथ तैयार होता है। फिर उस ग्रंथ की लिपियों और प्रतिलिपियों का सिलसिला शुरू होता है। उसका अपना महत्व है। इन सभी प्रतिलिपियों से मूलपाठ का सम्पादन करना पाठालोचन-विज्ञान का विषय है। कहने का अभिप्राय यह है कि एक पाण्डुलिपि में अनेक विषयों का सम्मिलित योगदान होता है, तभी वह पाण्डुलिपि कहलाती है। मूल लेखक द्वारा लिखित लेख भी पाण्डुलिपि कहलाता है तथा उसकी प्रतिलिपि भी पाण्डुलिपि कहलाती है। 5. पाण्डुलिपि वैज्ञानिक से अपेक्षाएँ
पाण्डुलिपिविज्ञान के द्वारा पाण्डुलिपि से संबंधित सभी प्रश्नों का प्रामाणिक समाधान प्रस्तुत किया जा सकता है। सामान्यतः जिन विषयों पर एक पाण्डुलिपि वैज्ञानिक से प्रश्न किये जा सकते हैं, उन्हें डॉ. सत्येन्द्र अपने 'पाण्डुलिपि विज्ञान' नामक ग्रंथ में इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं - 1. पाण्डुलिपि की खोज और प्रक्रिया (क्षेत्रीय अनुसंधान सहित)। 2. भौगोलिक एवं ऐतिहासिक प्रणाली से पाण्डुलिपियों के प्राप्ति-स्थान का
निर्देश। 3. पाण्डुलिपि प्राप्ति स्थान संबंधी सम्पूर्ण जानकारी। 4. पाण्डुलिपियों के विविध पाठों के संकलन के क्षेत्रों का अनुमानित निर्देश। 5. पाण्डुलिपि के काल-निर्णय की विविध पद्धतियाँ । 6. पाण्डुलिपि के लिप्यासन, जैसे - कागज, स्याही, लेखनी आदि का
पाण्डुलिपि के माध्यम से ज्ञान एवं काल-ज्ञान के अनुसंधान की पद्धति। 7. पाण्डुलिपि का लिपि-विज्ञान एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि। 8. पाण्डुलिपि के विषय की दृष्टि से उसकी निरूपण शैली का स्वरूप । 9. पाण्डुलिपि के विविध प्रकारों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य एवं भौगोलिक
सीमा-निर्देश। 10. पाण्डुलिपि की प्रतिलिपियों के प्रसार का मार्ग एवं क्षेत्र। 11. पाण्डुलिपियों के माध्यम से लिपि के विकास का इतिहास। सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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