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________________ 4. पाण्डुलिपि विज्ञान क्या है? विगत हजारों-लाखों वर्षों से मनुष्य गुहा-जीवन से आज तक संस्कृति एवं इतिहास का निर्माण करता हुआ निरन्तर आगे बढ़ रहा है । इसके प्रमाण प्राचीन काल के भवनों के खण्डहर, समाधियाँ, मन्दिर तथा अन्य वस्तुएँ, जैसे - मृदभाण्ड, मुद्राएँ, मृण्मूर्तियाँ, ईंटें, अस्त्र-शस्त्र आदि के द्वारा देखे जा सकते हैं। इनके अतिरिक्त शिलालेख, चट्टानलेख, ताम्रलेख एवं भित्तिचित्र भी उसकी प्रगति के सूचक कहे जा सकते हैं । ये ही वे अवशेष हैं, जिनके माध्यम से मनुष्य अपने इतिहास का ताना-बाना बुनता है। उदाहरणार्थ - अल्टामीरा की गुफाओं के वे चित्र, जिन्हें तत्कालीन मानव ने उकेरा था, उसे उसके तत्कालीन जीवन का साक्षात् इतिहास ही कहना चाहिए। धीरे-धीरे इतिहास और संस्कृति के विकास-क्रम में आदिम मानव एक ऐसे बिन्दु पर आ टिकता है, जहाँ एक ओर वह चित्रों से 'लिपि' की ओर बढ़ता है और दूसरी ओर 'भाषा' का विकास करता है। इस प्रकार लिपि और भाषा के सहारे आदिकाल से आज तक मनुष्य अपने को ही प्रतिबिम्बित करता आ रहा है। ये सभी बातें - चित्र से लेखन कला तक पाण्डुलिपि के अन्तर्गत ही मानी जाती हैं। 'लेखन कला' में कई तत्व एक साथ काम करते हैं, जैसे - स्वयं लेखक (उसके अन्तर्जगत सहित), लेखनी, लेखन का आधार (कागज, स्याही) आदि हैं। इनमें से प्रत्येक का अपना महत्व है, इतिहास है। लेखक या लिपिक जब कोई रचना लिखते हैं, तो अनेक समस्याएँ भी उनके साथ उत्पन्न होती हैं। इन समस्याओं के समाधान का एकमात्र उपाय पाण्डुलिपि विज्ञान ही है। एक पाण्डुलिपि को तैयार करने में अनेक पक्षों का सम्मिलित योगदान होता है। इसमें एक पक्ष लेखन और रचना-विषयक होता है, जो ग्रंथ-लेखन-कला का विषय है, दूसरा पक्ष लिपि है, जो लिपिविज्ञान' का विषय है, तीसरा भाषाविषयक पक्ष है, जो भाषाविज्ञान का विषय है, चौथा उस ग्रंथ में की गई ज्ञानविज्ञान की चर्चा का विषय है, जो काव्य शास्त्र या अन्य ज्ञान-विज्ञान से संबंधित हैं एवं ग्रंथ में चित्रित चित्र चित्रकला के विषय हैं। ग्रंथ-लेखन का आधार - चमड़ा, ईंट, छाल, कपड़ा, कागज आदि के अपने-अपने विषय हैं और अन्त सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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