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________________ इस प्रकार के संकेत 3 लाख वर्ष ई. पू. के मिलते हैं। इस कार्य के सम्पादन में उसने पत्थरों का उपयोग किया। अतः इस प्रकार के अभिलेखों को गुहा या शैलाश्रय अभिलेख कहते हैं। (2) मृदा (Clay) अभिलेख : प्रस्तर-उपयोग के बाद मनुष्य ने धीरे-धीरे मृदा (मिट्टी) का उपयोग करना प्रारंभ किया। इसके प्रमाणस्वरूप अनेक पुरातात्विक महत्त्व की ईंटों पर अभिलेख प्राप्त हुए हैं। (3) पेपीरस अभिलेख : मृदा-ईंटों के पश्चात् पेपीरस का प्रयोग प्रारंभ हुआ। पहले पेपीरस के खरड़ों (Rolls) पर ग्रंथ लिपिबद्ध किये जाते थे। ये पेपीरस के खरीते (Rolls) या कुण्डलियाँ बहुत लम्बे-लम्बे होते थे। इन लम्बेलम्बे खरीतों की साज-सम्हाल करना कष्टप्रद एवं असुविधाजनक होने के कारण, इन्हें दुहरा-तिहरा कर पृष्ठ या पन्ने का रूप दिया जाने लगा होगा। परिणामतः बाद में पृष्ठ-लेखन का विकास हुआ। (4) काष्ठ-पट्टी अभिलेख : धीरे-धीरे लिखने की प्रक्रिया का विकास हुआ। इसके लिए लिखने, मिटाने और फिर लिखने की सुविधा की दृष्टि से काष्ठपट्टी या लकड़ी की पाटी काम में ली जाती थी। पश्चिम में इसके स्थान पर मोम की पाटी का प्रयोग मिलता है। कभी-कभी इन मोमपाटी के आवरण पटलों का प्रयोग कुण्डलियों के पृष्ठों की रक्षार्थ जिल्द की तरह काम में लिया जाने लगा। (5) चर्म-पत्र या पार्चमैण्ट : पहली शताब्दी से ही पुराभिलेख की अनेक सामग्रियाँ लिप्यासन के लिए पेपीरस की बजाय चर्म-पत्र पर लिपिबद्ध की जाने लगी थीं। इस प्रकार पार्चमैण्ट पर उपलब्ध सामग्री को लिपिविज्ञान में कोडैक्स (Codex) कहा जाता है। आजकल के जिल्द-बन्द बड़े-बड़े ग्रन्थों के पूर्वज ये कोडैक्स ही कहे जा सकते हैं, जो ईसा की चतुर्थ शती से विशेष रूप से प्रचलित थे। इस प्रकार विकास-क्रम से पाण्डुलिपि के उपर्युक्त पाँच भेद किए जा सकते हैं। सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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