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अध्याय 8
पाण्डुलिपि-संरक्षण ( रख-रखाव)
1. आवश्यकता एवं महत्त्व
वर्तमानकाल में पाण्डुलिपियों की सुरक्षा का दायित्व बढ़ गया है। हमारे पूर्वजों की पीढ़ियों की इस सांस्कृतिक धरोहर को यदि सम्हालकर नहीं रखा तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें क्षमा नहीं करेंगी। पाण्डुलिपियों की अन्य समस्याओं की तरह आज उनकी सुरक्षा या रख-रखाव की समस्या भी कम चिन्तनीय नहीं है। पाण्डुलिपियों के प्रकारों को ध्यान में रखते हुए वे ताड़पत्र, भोजपत्र, चमड़ा, कपड़ा, कागज, लकड़ी, रेशम, प्रस्तर, मिट्टी, सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल, काँसा, लोहा, हाथीदाँत, शंख, सीपी आदि किसी लिप्यासन पर लिपिबद्ध हो सकती हैं। इसलिए प्रत्येक प्रकार की पाण्डुलिपि पर भी रख-रखाव या सुरक्षा की दृष्टि से अलग-अलग देख-रेख की विधियाँ अपनानी पड़ेंगी।
पिछले दिनों एक दैनिक समाचारपत्र में यह पढ़कर हैरानी हुई कि - “सिडनी, (रायटर) किताबों के रखरखाव के लिए धन नहीं होने के कारण आस्ट्रेलिया के एक विश्वविद्यालय ने हजारों पुस्तकों को दफन कर दिया। पश्चिम सिडनी विश्वविद्यालय के प्रवक्ता स्टीवन मैचेट ने आज बताया कि विश्वविद्यालय को अभी पता नहीं चल पाया है कि इस हरकत के पीछे कौन जिम्मेवार था। विश्वविद्यालय की ये हजारों किताबें 1996 में विश्वविद्यालय के मैदान में दफना दी गईं। यह पता नहीं चल पाया है कि किस मूर्ख ने यह कांड करवाया। समाचारपत्र 'द डेली टेलीग्राफ' के अनुसार दस हजार किताबें दफनाई गई थीं।'' इससे यह तो पता नहीं चलता कि किन परिस्थितियों में ऐसा हुआ। धन की कमी एक कारण हो सकता है। परन्तु कभी-कभी प्राकृतिक कारणों से भी पाण्डुलिपियाँ नष्ट हो जाया करती हैं।" दक्षिण की अधिक ऊष्ण हवा में
1. पंजाब केशरी, दिल्ली, 22 मार्च, 2001
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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