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( 5 ) बाह्य - साम्य से अर्थ लेने से समस्या : जब किसी शब्द-रूप का 'बाह्य साम्य' देखकर अर्थ कर बैठते हैं, तब यह समस्या उठती है । इस संदर्भ में डॉ. सत्येन्द्र कहते हैं कि " संदेश - रासक में एक शब्द है 'कोसिल्लि' इसका बाह्य-साम्य ‘कुशल' से मिलता है, अतः टिप्पणक और अवचूरिका में (श. 22 ) इसका अर्थ 'कुशलेन अर्थात् कुशलतापूर्वक' कर दिया गया। पर 'देशीनाममाला' में इस शब्द के यथार्थ अर्थ को ग्रहण करने का प्रयत्न नहीं किया । प्राभृतम् अर्थ ठीक है, यह डॉ. द्विवेदी का अभिमत है । "
( 6 ) छन्दानुकूलता से अर्थ-समस्या : कभी-कभी कवि छन्द की दृष्टि से मात्राएँ घटा-बढ़ा देते हैं । इससे भी शब्द - रूप का अर्थ-ग्रहण करने में समस्या आ जाती है ।
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(7) देश-काल भेद से शब्दार्थ भेद की समस्या : प्राचीन पाण्डुलिपियों में जो काव्य - शास्त्र संबंधी होती हैं, उनमें प्राय: देश-काल भेद से शब्दार्थ-भेद की समस्या आया करती है। एक ही शब्द के कोषगत अनेक अर्थ होते हैं, किन्तु एक रचना में एक समय एक ही अर्थ-ग्रहण किया जा सकता है। प्राचीन कवियों द्वारा एक ही शब्द विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त किये गए हैं । अतः अर्थ-ग्रहण के लिए ग्रंथकार और ग्रंथ के देश एवं काल का भी ध्यान रखना चाहिए ।
इस प्रकार पाण्डुलिपिविज्ञानार्थी के लिए जिस सामान्यज्ञान की अपेक्षा की जाती है, उसे ध्यान में रखकर यहाँ अर्थ-समस्या के समाधान की ओर किंचित् इंगित मात्र किया गया है।
1. पाण्डुलिपिविज्ञान, पृ. 332
शब्द और अर्थ : एक समस्या
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