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नाम शास्त्र विषय . शब्द-भेद 1. व्याकरण रचना एवं गठन 1. रूढ़, 2. यौगिक, 3. योगरूढ़ 2. व्याकरण- बनावट 1. समास शब्द, 2. पुनरुक्त शब्द, भाषाविज्ञान
3. अनुकरणमूलक, 4. अनर्गल, 5. अनुवादयुग्म शब्द,
6. प्रतिध्वन्यात्मक शब्द 3. व्याकरण+ शब्द-विकास 1. तत्सम, 2. अर्द्धतत्सम, 3. तद्भव भाषाविज्ञान
4. देशज, 5. विदेशी 4. व्याकरण : कोटिगत (क) नाम, आख्यात, उपसर्ग, नियात कोटिगत (शब्दभेद) (ख) संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण
क्रियाविशेषण, समुच्चयबोधक,
संबंधसूचक, विस्मयादिबोधक 5. पारिभाषिक प्रयोगसीमा के काव्यशास्त्रीय, संगीत, सौन्दर्य, ज्योतिष
आधार पर शास्त्रीय आदि विषय संबंधी शब्द 6. अर्थ-विज्ञान
पर्यायवाची (समानार्थी), एकार्थवाची अनेकार्थवाची, भिन्नार्थवाची
(श्लेषार्थी), समानरूपी आदि। 7. काव्यशास्त्र -
वाचक, लक्षक एवं व्यंजक किन्तु; पाण्डुलिपिविज्ञान में पाण्डुलिपि में प्रयुक्त शब्द-रूपों के अर्थ ही विचार होता है । इस प्रकार के शब्द ग्रंथ-रचना में निश्चय ही सार्थक होते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि 'अर्थ का आधार शब्द-रूप है।' शब्द-रूप में मूलाधार 'अक्षरयोग' है और 'अक्षरयोग' लिपिकर्ता या लेखक द्वारा लिखे गये होते हैं। अब यदि किसी लेखक या लिपिकर्ता ने 'मानुस हों तो' शब्दरूप लिखा है तो इसका अर्थ होगा 'यदि मैं मनुष्य होऊँ' और यदि 'मानु सहों तो' शब्द-रूप लिखा है तो अर्थ होगा 'यदि मैं मान (रूठना) सहन करूँ तो'। इससे स्पष्ट है कि अक्षरावली के एक होने के बावजूद लिपिकर्ता के द्वारा शब्द-रूप खड़े करने के कारण अर्थ-भिन्नता उत्पन्न हुई। अतः कहा जा सकता
शब्द और अर्थ : एक समस्या
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