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( क ) रूढ़ : रूढ़ शब्द का एक मूल रूप होता है, जिसका कुछ अर्थ होता है । यह 'अर्थ' उस शब्द के मूलरूप के साथ 'रूढ़' हो जाता है। जैसे- 'गाय' या 'गौ' शब्द-रूप का जो अर्थ है वह रूढ़ है, क्योंकि न जाने कब से इन दोनों में अभिन्न संबंध रहा है । अत: 'गौ' शब्द के साथ उसका अर्थ रूढ़ि या परम्परा से प्रचलित हो गया ।
(ख) यौगिक : जहाँ रूढ़ शब्द के साथ एक से अधिक ऐसे शब्द परस्पर मिल जायें या इनका योग हो जाये उन्हें यौगिक कहते हैं । जैसे- 'विद्या' रूढ़ शब्द है और 'बल' भी वैसा ही रूढ़ है; किन्तु विद्याबल, विद्यार्थी, विद्यालय आदि शब्दों के अर्थ में प्रक्रिया कुछ भिन्न होती है । इनमें से प्रत्येक शब्द अपने रूढ़ अर्थ के साथ परस्पर मिला है और यह 'यौगिक' शब्द रूप अर्थाभिव्यक्ति को विशिष्टता प्रदान करता है । 'विद्याबल' से उस शक्ति का अर्थ मिलता है जो विद्या में निहित है और विद्या में से विद्या के द्वारा प्रकट होता है ।'
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(ग) योगरूढ़ : इस प्रक्रिया में दो या अधिक शब्द परस्पर इस प्रकार का योग करते हैं कि उनके द्वारा प्रदत्त अर्थ, निर्मायक शब्दों के रूढ़ार्थों से भिन्न होते हुए भी, रूप में यौगिक उस शब्द को एक अलग रूढ़ अर्थ प्रदान करता है । जैसे 'जलज ' शब्द जल और ज ( उत्पन्न) दो शब्दों का यौगिक है, जिससे 'कमल' नामक पुष्प विशेष का ही अर्थ लिया जाता है । यद्यपि 'जलज' के यौगिक अर्थ में मछली, मूँगा, मोती, सीपी आदि भी संकेतित होते हैं; किन्तु उसका यह अर्थ 'कमल' के साथ रूढ़ हो गया है । अत: यह 'योगरूढ़ ' कहलाता है । इस प्रकार लिपिज्ञों की दृष्टि से ये भेद कोई समस्या नहीं उठाते।
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शब्द के ये भेद आधुनिक भाषा वैज्ञानिकों के लिए समस्यात्मक हैं । पाण्डुलिपिविज्ञान में तो व्याकरणिक शब्द - भेद (संज्ञा, सर्वनाम आदि) भी अभीष्ट नहीं है । 'शब्द-भेद' के लिए विविध शास्त्रानुसार एक तालिका निम्न प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है, जिसमें इन विविध भेदों के संकेत दिये गए हैं?
1. पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 311
2. पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 311
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सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान
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