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________________ इस प्रकार सामाजिक परिस्थितियाँ एवं सांस्कृतिक परिवेश से पूर्ण सामग्री को काल-निर्णय का आधार बनाया जा सकता है। अन्त में, जिस प्रकार सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश का उपर्युक्त प्रकार से काल-निर्णय के लिए साक्ष्य बनाया जा सकता है, उसी प्रकार धर्म, राजनीति, शिक्षा, ज्योतिष, आर्थिक पहलू आदि भी अपनी-अपनी प्रकार से काल सापेक्ष होते हैं। अत: काल-निर्णय में मात्र किसी एक आधार से काम नहीं चल पाता, जितनी भी बातों में काल-सूचक बीज होने की सम्भावना हो सकती है, उनकी परीक्षा की जानी आवश्यक है। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने अपने ग्रंथ 'पाणिनिकालीन भारत में इसी पद्धति का अनुसरण करते हुए पाणिनि का काल-निर्णय करने में साहित्यिक तर्कों का आश्रय लिया था, जिसमें गोल्ड स्टुकर के इस तर्क को काटने के लिए कि पाणिनि आरण्यक, उपनिषद्, प्रातिशाख्य, वाजसनेयी संहिता, शतपथ ब्राह्मण, अथर्ववेद और षड्दर्शन से परिचित नहीं थे, अतः यास्क के बाद पाणिनि हुए थे। उन्होंने मस्करी परिव्राजक, एक विशेष शब्द, बुद्ध-धर्म, श्राविष्ठा प्रथम नक्षत्र, नन्द से संबंध, राजनीतिक सामग्री, यवनानी लिपि का उल्लेख, पशुविषयक कथान्त स्थान नाम, क्षुद्रक-मालय, पाणिनि और कौटिल्य आदि की परीक्षा की थी। जिससे वे यह सिद्ध कर सके कि पाणिनि बुद्ध से पूर्व न होकर बाद में हुए। इस प्रकार पूर्व तर्कों का खण्डन-मण्डन करने के लिए बाह्य और अंतरंग साक्ष्यों की परीक्षा करनी होती है। 2. अन्तरंग साक्ष्य ___ (क) स्थूल-पक्ष : रचना के अन्तरंग साक्ष्य के अन्तर्गत स्थूल-पक्ष से अभिप्राय उन भौतिक वस्तुओं से होता है जिनसे उस रचना या ग्रंथ का निर्माण हुआ है। इसे वस्तुगत पक्ष भी कह सकते हैं। जैसे - कागज, ताड़पत्र, स्याही आदि। ग्रंथ का आकार-प्रकार, स्याही, लिपि, लेखन-शैली, अलंकरण आदि भी स्थूल-पक्ष के ही अंग हैं । इन सभी बातों से यह देखना होता है कि ये सभी या इनमें से कोई एक काल-निर्णय का आधार बनाया जा सकता है या नहीं। हम यहाँ प्रत्येक पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे। (1) लिप्यासन (कागजादि) : लिप्यासन से अभिप्राय लेखन के आधार से है । वह ईंट, पत्थर, धातु, चमड़ा, ताड़पत्र, वृक्षों की छाल, कागज आदि कोई काल-निर्णय 171 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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