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________________ 3. काल-निर्णय की समस्याएँ (1) पाठ-भेद : उपर्युक्त पद्धतियों से काल-निर्णय करने के उपरान्त भी अनेक समस्याएँ यथार्थ कठिनाइयों के रूप में हमारे समक्ष आती हैं। ये समस्याएँ अधिकांश प्राचीन पाण्डुलिपियों के संदर्भ में आती हैं। जब एक ही ग्रंथ की अनेक प्रतियाँ उपलब्ध हैं और उनके काल (संवत्) विषयक पंक्तियों में पाठभेद हो। उदाहरणार्थ 'बीसलदेव रास' की 5 प्रतियाँ उपलब्ध हैं। इन प्रतियों की पुष्पिका के आधार पर विद्वानों के 'बीसलदेव रास' के रचनाकाल के संबंध में विभिन्न मत हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल 'बारह सै बहोत्तराहा मंझारि' का अर्थ 1212 मानते हैं तो लाला सीताराम 1272 । एक प्रति में 'संवत सहस सतिहत्तरई जाणि' - मिलता है। इसका अर्थ संवत् 1077 लिया जाता है तो दूसरी प्रति में 'संवत तेर सत्तोत्तरइ जाणि'. मिलता है. जिसके आधार पर 1377 वि. माना जाता है। और एक अन्य प्रति में 'संवत सहस तिहुत्तर जाणि' मिलता है जिसके आधार पर संवत् 1073 माना जाता है। डॉ. माताप्रसाद गुप्त एक अन्य प्रति के आधार पर संवत् 1309 पढ़ते हैं। इस प्रकार इतने संवतों में से असली संवत् निकाल पाना मुश्किल है। यद्यपि इस समस्या का निदान पाठालोचन के विद्वानों के पास है, फिर भी कभी-कभी तो पाठालोचन के विद्वान भी कोई निर्णय ले पाने में असमर्थ रहते हैं। क्योंकि संवत् का प्रारंभ कहीं चैत्रादि से तो कहीं कार्तिकादि से माना जाता है। अतः ठीक-ठीक तिथि-निर्णय करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा 'संवत्' का उल्लेख 'गत' और 'वर्तमान' दोनों के लिए होता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए। पाठ-भेद की समस्या के कारण कभी-कभी पंचांग सिद्ध सम्वत् भी अप्रामाणिक हो जाता है। (2) पाठ-दोष : 'पाठ-भेद' के बाद पाठ-दोष' भी समस्याएँ खड़ी कर देता है। इसका मूल कारण है पाठ का 'भ्रान्त-पठन'। भ्रान्त-पठन या वाचन के कारण 'साठ' का 'आठ' पढ़ा जा सकता है। 'चालीस' का 'बालीस' भी पढ़ा जा सकता है। पाठ-दोष के कारण कभी-कभी इतनी विकृति आ जाती है कि उसके मूल की कल्पना करना भी दुष्कर है। ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं।' 1. पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 258 काल-निर्णय 161 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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