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________________ (3) विविध सन् - संवत् का उल्लेख : जब किसी ग्रंथ में सामान्य परम्परा से हटकर रचनाकार एकाधिक संवतों को प्रयोग कर देता है, तब भी 'काल निर्णय' में एक समस्या खड़ी हो जाती है। विक्रमी के साथ हिजरी या दोनों के एक साथ आ जाने पर निर्णय करना कठिन हो जाता है । यथा संमत सत्रह से ऐकानवे होई, एगारह से सन पैंतालीस सोई । अगहन मास पछ अजीयारा, तीरथ तीरोदसी सुकर सँवारा ॥ इस छन्द में 'उजियारा' की जगह 'अजीयारा' (शुक्लपक्ष) तथा तीरथ की जगह 'तिथि' होना चाहिए। हो सकता है ये गलत छपे हों । तीरोदसी 'त्रयोदशी' का विकृत रूप है, किन्तु इसमें दिया गया संवत् 1791 और सन् 1145 विशेष रूप से दृष्टव्य है । इस प्रकार अनेक अभिलेखों एवं ग्रंथों में दो या तीन संवत् अथवा सन् ही नहीं आये हैं अपितु अनेक सन् - संवतों का उल्लेख हुआ है । इसलिए उन्हें वर्तमान ईस्वी सन् एवं विक्रमी नियमित संवतों में बिठाने में समस्या उत्पन्न हो जाती है। 4. भारत में प्रचलित सन्- संवत् (1 ) वर्द्धमान संवत् : बड़ली (अजमेर) से प्राप्त शिलालेख में 'वीर संवत्' का उपयोग हुआ है। यह शिलालेख महावीर स्वामी के निर्वाण से 84वें वर्ष में लिखा गया था। आगे चलकर यही 'वीर संवत्' जैन ग्रंथों में वर्द्धमान संवत् के नाम से उपयोग में लाया गया है । ( 2 ) राज्य वर्ष : अशोक के शिलालेखों में राज्य वर्ष का उल्लेख हुआ है । । ( 3 ) नियमित संवत् या शक संवत् : शक संवत् अपने 500वें वर्ष तक बिना 'शक' शब्द के मात्र 'वर्षे' या 'संवत्सरे' शब्द से जाना जाता था । इसके बाद 500 वें वर्ष से 1262 वें वर्ष के मध्य इसके साथ 'शक' शब्द का प्रयोग होने लगा, जिसका अर्थ था - शकनृपति के राज्यारोहण के समय से । ( 4 ) शालिवाहन संवत् : 14वीं शती से शक शब्द के साथ 'शालिवाहन' जोड़ा जाने लगा । ' शाके शालिवाहन संवत्' और 'शक संवत्' एक ही हैं। केवल नाम शालिवाहन अलग से दे दिया गया है। शक संवत् विक्रम संवत् के 135 वर्ष बाद, सन् 78 ई. में स्थापित हुआ । 162 Jain Education International सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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