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________________ गणना के लिए अपने राज्याभिषेक के वर्ष का उल्लेख कर देता है। शुंगों के शिलालेखों में भी यही पद्धति अपनाई गई है। इसके बाद आंध्रों के शिलालेखों में गौतमीपुत्र सातकर्णी के एक लेख में काल-संकेत का कुछ विस्तार पाते हैं। जैसे - 'सवछरे, 10+8 कस परवे 2 दिवसे'। इसमें राज्याभिषेक से वर्ष-गणना करते हुए ऋतु, पक्ष, दिन तथा तिथि का भी उल्लेख हुआ है । अर्थात् गौतमी पुत्र सातकर्णी के राजत्वकाल के 18वें वर्ष में वर्षा ऋतु के दूसरे पाख का पहला दिन।। महाराष्ट्र के क्षहरात एवं उज्जयिनी के महाक्षत्रपों के शिलालेखों में काल-संकेत विषय जानकारी और विस्तार मिलता है। इनके शिलालेखों में ऋतु के स्थान पर महीने का उल्लेख मिलता है – 'बसे 40 + 2 वैशाख मासे'। एक-दूसरे शिलालेख में पहले मास से बहुल (कृष्ण) या शुद्ध (शुक्ल) पक्ष के साथ तिथि तथा वार शब्द का भी प्रयोग किया गया है। जैसे - "वर्ष द्विपंचाशे 50+2 फगुण बहुलस द्वितीय वारे"। इस उद्धरण में 'वाट' शब्द का दिवसादि के लिए पहले-पहल प्रयोग हुआ है। इनके एक शिलालेख में तो रोहिणी नक्षत्रे' के द्वारा नक्षत्र का मुहूर्त तक भी दिया है। इस प्रकार 'नियमित संवत् वर्ष' के साथ राज्यवर्ष का उल्लेख भी किया गया है। जैसे - श्रीधरवर्मणा ....... स्वराज्याभि वृद्धि करे वैजयिके संवत्सरे त्रयोदशमे। श्रावण बहुलस्य दशमी दिवसं पूर्वक मेत ....... 20+1 अर्थात् श्रीधरवर्मा के विजयी एवं समृद्धिशाली तेरहवें राज्य वर्ष में और 201वें (संवत्) में श्रावण मास के कृष्णपक्ष की दशमी के दिन..."। इसमें राज्यवर्ष के अलावा 201 वर्ष दिया गया है वह शक संवत् ही है। इस प्रकार 'शक' या 'शाक' शब्द का प्रयोग नहीं करके केवल 'वर्ष या संवत्सरे' से काम चला लिया गया है।' वस्तुतः शक सं. 500 से 1268 तक के शिलालेखों में वर्ष के साथ निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग हुआ है - (1) शकनृपति राज्याभिषेक संवत्सर, (2) शकनृपति संवत्सर, (3) शकनृप संवत्सर, (4) शकनृपकाल, (5) शक संवत, (6) शक, (7) शाक। इससे स्पष्ट है कि 500वें वर्ष से शक या शाके शब्द का प्रयोग नियमित रूप से होने 1. पाण्डुलिपिविज्ञान : डॉ. सत्येन्द्र, पृ. 247 2. Rajbali Pandey : Indian Palaeography, P. 191. 156 सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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