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________________ 'परिशिष्ट' रूप में, उसके पाठ को भी यथासंभव प्रमाणिक बनाकर दे देना चाहिए। इस प्रकार इस समस्त सामग्री को सजा देने में सिद्धान्त यह है कि 'पाठालोचक' की वैज्ञानिक कसौटी में यदि कोई त्रुटि रह गयी हो तो विद्वान पाठक अपनी कसौटी से समस्त सामग्री की स्वयं जाँच कर सके।'' 12. 'अर्थ-न्यास' का पाठालोचन में महत्त्व __ यद्यपि किसी भी रचना का पाठ उसका अर्थ जानने के लिए ही किया जाता है; किन्तु पाठालोचन प्रक्रिया में 'अर्थ' का विशेष महत्व नहीं होता। क्योंकि विकृत पाठ से अपेक्षित अर्थ नहीं प्राप्त किया जा सकता। ऐसे अर्थ को प्रामाणिक भी नहीं कहा जा सकता। पाठालोचन का महत्व प्रामाणिक अर्थ को प्राप्त करने में है। शब्द के अर्थ का ज्ञान परिमाण-सापेक्ष्य है। यदि किसी पाठालोचक का ज्ञान बहुत सीमित है तो कभी-कभी वह क्षेत्र-विशेष के बहुत प्रचलित शब्द का अर्थ भी नहीं जान पाता है । फलतः अपने सीमित ज्ञान के कारण अर्थ को दृष्टि में रखते हुए त्रुटिपूर्ण संशोधन कर देगा। यह भी सच है कि पाठालोचक भी कृतिकालीन समस्त शब्दों के अर्थ से परिचित नहीं रहता है । अत: पाठ-विज्ञान से निर्धारित रूप को ही उसे रखना चाहिए। क्योंकि ऐसा भी कोई शब्द हो सकता है जिसका अर्थ भविष्य में ज्ञानवर्धन के साथ प्राप्त हो। जैसे - 'पदमावत' के 'सास दुआलि' पाठ को डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने बाह्य संभावना के द्वारा प्रामाणिक सिद्ध किया है। सांस दुआलि या डोरी है। यदि किसी ग्रंथ की एक ही प्रति उपलब्ध हो और वह भी मूल नहीं हो, तो भी उसका सम्पादन या पाठालोचन हो सकता है। ऐसे ग्रंथ के सम्पादन में यह जानना आवश्यक है कि आन्तरिक-बाह्य साक्ष्य से ग्रंथ का रचनाकाल क्या था, कहाँ लिखा गया था, एक ही स्थान पर लिखा गया या जगह-जगह आदि। जिस स्थान पर रह कर ग्रंथ लिखा गया वहाँ की भाषा क्या थी? तत्कालीन अन्य रचनाकार कौन थे? आदि बातों का पता लगाना - बाह्य-साक्ष्य - पाठालोचन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है अन्त:साक्ष्य का ज्ञान, जिसका उपयोग इतिहास, पुरातत्वान्वेषी शिलालेखों तथा ताम्रपत्रों के पाठउद्घाटन के समय किया करते हैं । इसमें अर्थ-न्यास' का भी अपना महत्व है, 1. पाण्डुलिपिविज्ञान, पृ. 239 पाठालोचन 153 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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