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________________ (घ) क्या लेख स्पष्ट है? (ङ) ग्रंथ का आकार - फुट एवं इंच (से.मी.) में? (च) प्राप्ति-उपाय ? (छ) पुष्पिका? (ज) ग्रंथ-रचना का इतिहास ? (झ) पाठ-परम्परा तथा पाठविषयक उल्लेखनीय बातें। वर्तनी-भेद के उदाहरण सहित। (ञ) वर्तमान शोध की दृष्टि से प्रस्तुत ग्रन्थ का महत्व? आदि (आ) प्रतिलिपिकार-प्रणाली : कभी प्राप्त ग्रंथ के प्रतिलिपिकर्ता के नाम के प्रथम अक्षर को लेकर भी संकेत बनाये जा सकते हैं । जैसे - 'बीसलदेव रास' की एक प्रति के लिपिकर्ता पण्डित सीहा' के नाम के प्रथम अक्षर 'प' को लेकर संकेत बनाया गया है। (इ) स्थान-संकेत-प्रणाली : ग्रंथ की पुष्पिका में यदि रचना के स्थान का नाम हो तो उस स्थान के नाम के प्रथम अक्षर के आधार पर भी संकेत बनाया जा सकता है । जैसे - 'पृथ्वीराजरासो' की मोहनपुरे वाली प्रति का संकेत 'मो.' दिया जा सकता है। (ई) पाठ-साम्य-समूह प्रणाली : ग्रंथ-संग्रह करने के बाद समस्त प्राप्त पाण्डुलिपियों का वर्गीकरण पाठ-साम्य के आधार पर किया जा सकता है। इस प्रकार मानलें कि तीन ग्रंथ-समूह बने। उनमें प्रथम में 4, द्वितीय में 3 तथा तृतीय में 5 ग्रंथ हैं। उनके नाम प्रथम समूह, द्वितीय समूह, तृतीय समूह दिये जा सकते हैं। अब यदि प्रथम समूह की तीसरी प्रति का संदर्भ देना है तो संकेत बनेगा प्र. 3। इसी प्रकार द्वि. 2, तृ. 4 आदि। ___ (उ) पत्र-संख्या प्रणाली : यदि खुले पत्रों में कोई ग्रंथ मिलता है तो पत्रों की संख्या के आधार पर संकेत बना सकते हैं। जैसे - किसी प्रति में 7 पष्ठ हैं तो उसका संकेत 'सा.' बनाया जा सकता है। (ऊ) पुनरुद्धार प्रणाली : जब एक ही ग्रंथ की दो अधूरी प्रतियाँ उपलब्ध हों तो दोनों को मिलाकर एक प्रति तैयार कर ली जाती है। इस प्रकार पुनरुद्धार 150 सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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