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________________ अध्याय 5 1. मूलपाठ किसी भी पाण्डुलिपि की लिपि की समस्या निदान के बाद उसके 'पाठ' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मूल लेखक द्वारा लिखित पाण्डुलिपि 'मूलपाठ' कहलाती है। ऐसी पाण्डुलिपि अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है, जिसकी सुरक्षा करना अत्यन्तावश्यक है। क्योंकि, 'मूलपाठ' अत्यधिक उपयोगी होता है । उसके उपयोग को निम्न बिन्दुओं से समझा जा सकता है : पाठालोचन (क) 'मूलपाठ' से लेखक की लिपि - लेखन शैली का पता चलता है जिससे तत्कालीन स्थिति और अभ्यास का पता चलता है । (ख) लेखक की वर्तनी - विषयक पद्धति का ज्ञान होता है । (ग) 'पाठालोचन - विज्ञान' का ध्येय मूलपाठ की खोज करना होता है, जिससे ग्रंथ - संघटन सम्पादन में वह आदर्श का काम देता है । (घ) मूल लेखक के शब्द - भण्डारण का ज्ञान भी मूलपाठ से हो जाता है । (ङ) मूलपाठ से अन्य उपलब्ध पाठों को मिलाने से पाठान्तरों एवं पाठभेदों में वर्तनी, लिपि एवं शब्दार्थ के रूपान्तर में होने वाली प्रक्रिया का ज्ञान होता है । (च) मूलपाठ की सामग्री अर्थात् कागज, स्याही, लिपिलेखन, पृष्ठांकन, चित्र, हाशिया, आकार, हड़ताल - उपयोग आदि से अनेक ऐतिहासिक तथ्यों का उद्घाटन होता है । 140 2. लिपिक का सर्जन किसी भी ग्रंथागार में किसी मूलपाठ का होना काफी महत्वपूर्ण होता है, किन्तु ग्रंथागार में रखे सभी ग्रंथ मूलपाठ नहीं होते। उनमें से बहुत से मूलपाठ के वंश की आगे की कई पीढ़ियों से आगे के हो सकते हैं। प्रारंभ में मूलपाठ सामान्य पाण्डुलिपिविज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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