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________________ ग म । चव। स्याही की अधिकता, पन्ने का फटना, स्याही का फैलना तथा लिखे हुए पर लिखने के कारण कुछ का कुछ पढ़ना मिलता है । इससे अर्थ का अनर्थ बहुत हुआ है I 数 थ 有 झभु या भुझ । फ पु । पु फ । बंगला लिपि के अनुसार लिखित 'उ' में यथा झमम । यहाँ भ में (उ) की मात्रा मिलायी गयी है, इससे 'भ' 'झ' लगने लगा है । ट ठ | ड उ । द ब। ब> द। खत ( द्विवत्य युक्त त्) लत < त्तत व > न। सय्य व प्त । त्त (त्र) इस वर्ग के अन्तर्गत अनेक उदाहरण मिलते हैं जो लिपिकारों के अनुसार बदलते रहते हैं । यादृशं पुस्तकं दृष्टवा तादृशं लिखितं मया' या ' मक्षिका स्थाने मक्षिका पात' के अनुयायी कम शिक्षित लिपिकारों द्वारा ऐसी भ्रांतियाँ पूर्ण भूलें हुआ करती हैं। ठट । उड । Jain Education International ज ज व द द जब न 12. (ई) विशिष्ट वर्ण चिह्न राजस्थान में देवनागरी वर्णमाला के य और व के नीचे बिन्दी लगाने की प्रथा है। पुराने ढंग की पाठशालाओं में वर्णमाला सिखाते समय 'व वा तले स बींदली' तथा 'ययिवोपेटक' और ' ययियो बींदक' पढ़ाया जाता था । अर्थात् व और य के नीचे बिन्दी लगाई जाती थी, यथा यु, व् । इससे अर्थभेद स्पष्ट करने का प्रयास किया जाता था । इससे एक तो यह लाभ था कि एक से दिखने वाले वर्णों पाण्डुलिपि की लिपि : समस्या और समाधान ६ ६ - For Private & Personal Use Only 137 www.jainelibrary.org
SR No.002693
Book TitleSamanya Pandulipi Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirprasad Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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